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________________ आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप... 241 जप करने योग्य पदार्थों में से नमः सिद्धेभ्यः, अर्थात् सिद्धों के लिए नमस्कार। ऐसे पाँच अक्षरों का जप करने से साधन मनवांछित फल पाता है।358 अरहन्त परमेष्ठी की ध्यान करने से जीव जन्म-मरण ये मुक्त हो जाता है|359 अरहन्त, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय सभी साधुओं, इन पाँच परमेष्ठियों का बीज पदों से सहित साधक ध्यान करता है वह तत्त्वज्ञान मुनि अवश्य मोक्ष प्राप्त करता है अर्थात् इन पाँचों का बार-बार चिन्तन-ध्यान करना चाहिए।360 इस प्रकार उपर्युक्त बारह प्रकार के तपों को धारण करने के पश्चात् साधक को तपों के प्रभाव से अनेक ऋद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं। जिसका वर्णन आदिपुराण में इस प्रकार बताया गया है
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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