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________________ आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप..... 237 शुक्लध्यान के दो भेद है (क) पृथक्त्व वितर्क विचार शुक्लध्यान; (ख) एकत्व वितर्क विचार शुक्लध्यान | 340 (क) पृथक्त्वं वितर्क विचार शुक्लध्यान जिस ध्यान में वितर्क श्रुतज्ञान अर्थात् शास्त्रों के पदों का पृथक् पृथक् रूप से विचार अर्थात् संक्रमण होता रहे उसे पृथक्त्व वितर्क विचार नामक शुक्लध्यान कहते हैं। तात्पर्य यह है जिसमें अर्थ व्यंजन और योगों का पृथक्-पृथक् संक्रमण होता रहे अर्थात् अर्थ को छोड़कर व्यंजन (शब्द) का और व्यंजन को छोड़कर अर्थ का चिन्तन करने लगे अथवा इसी प्रकार मन, वचन और काय इन तीनों योगों का परिवर्तन होता रहे, उसे पृथक्त्व वितर्क विचार कहते हैं | 341 (ख) एकत्व वितर्क विचार शुक्लध्यान जिस ध्यान में वितर्क के एक रूप होने के कारण वीचार नहीं होता अर्थात् जिसमें अर्थ व्यंजन और योगों का संक्रमण नहीं होता, उसे एकत्व वितर्क वीचार नामक शुक्ल ध्यान कहते हैं। 342 अथवा इस ध्यान में वितर्क यानि श्रुत का आलम्बन तो होता है किन्तु विचार यानि चित्तवृत्ति में परिवर्तन ( बदलाव ) नहीं होता। किसी भी एक पर्याय पर चित्तवृत्ति निष्कम्प दीपशिखा के समान स्थिर हो जाती है। एक ही ध्येय पर चित्तवृत्ति के स्थिर रहने के कारण इसे एकत्व वितर्क शुक्लध्यान कहते हैं। 343 तीन योगों में से किसी एक योग का ध्यान करने वाला, मुनि ही यह एकत्व वितर्क शुक्लध्यान को धारण करता है। इस ध्यान में कषाय नष्ट हो जाते हैं और घाती (ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय, अन्तराय) कर्मों को क्षय कर रहा होता है, ऐसा साधक सवितर्क अर्थात् श्रुत ज्ञान सहित और अवीचार अर्थात् अर्थ व्यंजन तथा योगों के संक्रमण से रहित एकत्व वितर्क नाम के शुक्लध्यान का चिन्तन करता है। 344 पञ्चम पर्व में राजा सहस्त्र बल ने राज्य मोह को छोड़कर उत्कृष्ट जिनदीक्षा धारक करके शुक्लध्यान के माहात्म्य से केवल ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष पद प्राप्त किया। यही शुक्लध्यान का फल है। 345 2. परम शुक्लध्यान घातियाँ कर्मों के नष्ट होने से जो उत्कृष्ट केवलज्ञान प्राप्त करते हैं वे साधक सूक्ष्म क्रियापाति और समुच्छिन्न क्रिया निवर्ति शुक्लध्यान दोनों परम
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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