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________________ (xiv) तत्त्वार्थ सूत्र, तत्त्वार्थ पर टीकाएँ, आचार्य कुन्दकुन्द और उनका ग्रन्थ साहित्य, सिद्धसेन दिवाकर, समन्तभद्र आदि अनेक विद्वानों के साहित्य का परिचय दिया गया है। पुराण परिचय पुराण शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ, पुराण का अर्थ पुराण का लक्षण, जैनधर्म के अनुसार पुराण शब्द का अर्थ, पुराण के पर्यायवाची, आदिपुराण में पुराण का लक्षण, आदिपुराण में महापुराण की परिभाषा, आदिपुराण महाकाव्य का लक्षण, चौबीस तीर्थंकरों का संकेत, पुराणों की गणना, आदिपुराण का विवेच्य विषय। आचार्य जिनसेन का व्यक्तित्व और कृतित्व का विवेचन किया गया है। द्वितीय अध्याय इस अध्याय में तत्त्व विमर्श, पदार्थ संख्या, षड्द्रव्य, जीव का लक्षण, जीव का स्वरूप, अन्य मतावलम्बियों द्वारा आत्मा पर चर्चा, आत्मा के पर्याय, जीव की अवस्थाएँ, आत्म के विकास क्रम की अवस्था चौदह गुणस्थानों, चौदह मार्गाणाएँ एवं आठ अनुयोग जीव के शरीर के प्रकारों का वर्णन है। तृतीय अध्याय इस अध्याय में नरकं-स्वर्ग पर विचार किया गया है। नरक - नरक और उसके प्रकार, जाने के हेतु, नरक में जीवों की उत्पत्ति, नरक की वेदनाएँ, नरक में बिलों की गिनती, नारकियों की आयु, शरीर परिमाण, उनकी आकृति लेश्याएँ, शरीर की स्पर्श, आहार, कौन-सी नरक से निकले जीव कौन-सी अवस्था को प्राप्त होते हैं। नारकियों की सम्पूर्ण स्थिति का वर्णन किया गया है। मध्यलोक का संक्षिप्त वर्णन, स्वर्ग ( देवलोक) ऊर्ध्वलोक - देव, उनकी उत्पत्ति, देवों के प्रकार, स्वर्ग की परिभाषा, स्थिति, इन्द्रादि देवों के दश भेद, सौधर्म से लेकर अच्युत देवलोक की प्राप्ति के हेतु, देवों में दु:ख का कारण छब्बीस स्वर्गों के स्वरूप का विस्तृत वर्णन किया गया है। चतुर्थ अध्याय इस अध्याय के अंतर्गत अजीव तत्त्व और उनके प्रकार, भेदोपभेद, कार्मण पुद्गल कर्म की परिभाषा उसके भेदोपभेद, कर्मबन्ध और उसके प्रकार, बन्ध के हेतु, काल और उसके भेदोपभेदों पर सविस्तार चर्चा है। ___ पंचमाध्याय इस अध्याय में पुण्य-पाप, आस्रव, संवर निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप, ऋद्धि दान पर विचार किया गया है।
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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