SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (xiii) समान है। उनकी प्रामाणिकता ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप से परिपूर्ण जीवन से हमें अनुभव होती है। आदिपुराण द्वादशाङ्गी वाणी के दार्शनिक तत्त्वों की महत्ता को दर्शाने में पूर्णरूप से सक्षम हैं। यदि आदिपुराण के मर्म को जानना है तो इससे पूर्व इसमें निहित दार्शनिक रहस्यों की व्याख्या करना और उनको समझना नितान्त आवश्यक है। इसीलिए आदिपुराण के स्वारस्य को समझने के लिए कथाओं के माध्यम से दार्शनिक तत्त्वों पर यत्र-तत्र प्रसंगवश प्रकाश डाला गया है। उन्हीं तत्त्वों का, जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में, शोध की दृष्टि से उद्घाटन करना आवश्यक समझा गया । यही कारण है कि आज वह उद्भावना शोध-प्रबन्ध के रूप में प्रस्तुत है। आदिपुराण में जीव का स्वरूप, उसके प्राप्ति के साधन, उसके अन्वेषण करने के लिए चौदह मार्गणास्थान और नरक - स्वर्ग आदि का विस्तृत और मार्मिक वर्णन प्राप्त होता है। कर्म का स्वरूप कर्मबन्ध के हेतु कर्म के भेदोपभेद की चर्चा भी की गई है। इसमें जीव के लिए आध्यात्मिक शान्ति और अन्तिम लक्ष्य मुक्ति प्राप्त करने का जितना सरल और सुविस्तृत वर्णन मिलता है उतना अन्य ग्रन्थों में नहीं । जैन दर्शन ही एक ऐसा दर्शन है जो जीवात्मा को ही परमात्मास्वरूप होना स्वीकार करता है। जब जीवात्मा अपने शुद्ध, निर्मल स्वरूप में भासित होता है अर्थात् राग-द्वेष आदि बन्धनों से रहित होता है, तब वही जीव ईश्वर हो जाता है। इसलिए जीव को ईश्वर ने बनाया है- -यह अवधारणा समाप्त हो जाती है। जैन दर्शन के समान ही जीवात्मा अपने पूर्व जन्म में किये हुए कर्मों के कारण ही संसार में दुःख-सुख भोगता है, अन्य किसी कारण से नहीं । ईश्वर किसी को दुःख - सुख देने वाला नहीं। आदिपुराण के अध्ययन से सुस्पष्ट हो जाता है। जैन दर्शन के विषयों का आदिपुराण में कहीं अधिक विस्तार से और कहीं अधिक संक्षेप से समायोजन मिलता है। शोध-प्रबन्ध में अध्यायों की संख्या आशा से कहीं अधिक हो रही थी। अतः उन सभी विषयों को संक्षिप्त करते हुए निम्नलिखित सात अध्यायों में क्रमबद्ध करने का प्रयत्न किया गया है : प्रत्येक अध्याय के अन्त में समीक्षा दी गई है। प्रथम अध्याय आदिपुराण में दार्शनिक पृष्ठभूमि आगम परिचय, आगम, गणिपिटक, सूत्र, आगमों का निर्माण, प्रमुख वाचनाएँ, जैन आगमों की संख्या, दिगम्बर आगम, जैन दार्शनिक एवं उनका साहित्य - आचार उमास्वाति और
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy