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(xii) आदिपुराण जैन साहित्य का एक परमोत्तम ग्रन्थ है। यह केवल पुराण ही नहीं है, इसमें ग्रन्थकार ने अपने रचना कौशल से जैनियों के कथा, चारित्र, भूगोल और द्रव्य इन चारों ही अनुयोगों के विषय संग्रह कर दिये हैं।
जैनधर्म में जितने मान्य तत्त्व हैं, प्रायः वे सब ही इसमें कहीं न कहीं कथा के रूप में किसी न किसी रूप से कह दिये गये हैं। आदिपुराण सर्वसाधारण के उपकार की दृष्टि से ही लिखा गया है। आदिपुराण में जितनी दार्शनिक सामग्री उपलब्ध होती है शायद उतनी अन्य जैन पुराणों में नहीं। दर्शन की दृष्टि से कोई ऐसा विषय नहीं जो आदिपुराण के अध्ययन से न प्राप्त होता हो। आदिपुराण के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि सम्पूर्ण जैनागमों का सार इसमें निहित है। ___आदिपुराण में जिनसेन के शिष्य गुणभद्राचार्य ने पुराण तथा अपने गुरु की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि "आगमरूपी समुद्र से उत्पन्न हुए इस धर्मरूपी महारत्न को कौस्तुभमणि से भी अधिक मूल्यवान मानकर अपने हृदय में धारण करें, क्योंकि इसमें सुभाषितरूपी रत्नों का संचय किया गया है। यह पुराणरूपी समुद्र अत्यन्त गम्भीर है, इसका किनारा बहुत दूर है इस विषय में मुझे कुछ भी भय नहीं है, क्योंकि सब जगह दुर्लभ और सबसे श्रेष्ठ गुरु जिनसेनाचार्य का मार्ग मेरे आगे है, इसलिए मैं भी उनके मार्ग का अनुगामी शिष्य प्रशस्त मार्ग का आलम्बन कर अवश्य ही पुराण पार हो जाऊँगा।"
_(उत्तरपुराण 43.35-40) आदिपुराण महाकाव्य है, आध्यात्मिक शास्त्र है, आचारशास्त्र है और युग की आद्य व्यवस्था को बतलाने वाला महान ऐतिहासिक ग्रन्थ है। इसके प्रतिपाद्य विषयों को देखकर यह दृढ़ता से लिखा जा सकता है कि जो अन्य ग्रन्थों में प्रतिपादित है वह इसमें प्रतिपादित है और जो इसमें प्रतिपादित नहीं है वह अन्यत्र कहीं भी प्रतिपादित नहीं है।
जैन आगमों में बिखरी दार्शनिक समस्त सामग्री का सारल्येन अध्ययन करना हो तो इस पुराण का अध्ययन करना नितान्त आवश्यक हो जाता है। आज के युग में प्रत्येक व्यक्ति के लिए समस्त द्वादशाङ्गीं का अध्ययन करना कठिन प्रतीत होता है। जैन दर्शन की बिखरी दार्शनिक सामग्री जन-कल्याण में स्वाध्याय की रुचि, उत्साह और लग्न बढ़ाने के लिए एक माला के रूप में पिरोकर आदिपुराण ग्रन्थ में रखी गई है।
आदिपुराण जैन साहित्य के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों में से एक उत्कृष्ट कोटि का ग्रन्थ है। यह प्रमाणिक महापुरुषों के द्वारा रचा होने के कारण आप्त ग्रन्थ के