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________________ भूमिका जैन संस्कृति का मूलाधार जैनागम और जैन पुराण हैं। आगमों को यद्यपि सर्वज्ञान निधि कहा जाता है तथापि बहुत-सी बातें ऐसी हैं जिनका स्पष्ट विवरण पुराणों में ही मिलता है। पुराणों में कथाओं के माध्यम से ज्ञान को संजोया गया है। पुराण सच्चे अर्थों में जनवादी साहित्य हैं; क्योंकि उनका भाषा, विचार, परम्परा, जीवन-दर्शन, आदर्श एवं प्रतिपाद्य सभी का आधार तत्कालीन जनवादी प्रवृत्तियाँ और लोक-प्रचलित परम्पराएँ हैं। पुराणों की इस महत्ता के कारण ही इतने विशाल साहित्य की रचना हुई है। पुराण भारतीय संस्कृति के विश्वकोश हैं। जैन-परम्परा में भी विपुल संख्या में पुराणों की रचना की गयी। जैनधर्म में चौबीस तीर्थंकरों के चौबीस पुराण मिलते हैं। ईसा की लगभग चौथी शताब्दी से पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य अनेक जैन पुराणों की रचना की गयी। इन पुराणों के माध्यम से प्राचीन परम्परा और समकालीन धार्मिक जीवन के विविध पक्षों को उजागर करने के साथ ही राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, दार्शनिक आदि विषयों की भी विशद् चर्चा की गयी है। इसी महनीय पुनीत परम्परा में अपना विशिष्ट महत्त्व रखने वाला ग्रन्थ आदिपुराण आता है। आदिपुराण संस्कृत वाङ्मय की सर्वोत्कृष्ट परिणति है। नहापुराण के दो भाग हैं। पहले भाग का नाम आदिपुराण है और दूसरे का नाम उत्तरपुराण। आदिपुराण में मुख्यतः प्रथम तीर्थंकर, प्रथम चक्रवर्ती का चरित्र है। उत्तर पुराण में शेष तेईस तीर्थंकरों का तथा चक्रवर्ती, नारायण आदि श्लाका पुरुषों का चरित्र है। पूरे महापुराण में चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ नारायण, नौ प्रतिनारायण और नौ बलभद्र इन तिरेसठ श्लाका पुरुषों का चरित्र वर्णित है। जैन दिगम्बर परम्परा में कथा, चारित्र, भूगोल और द्रव्य-इन चार अनुयोगों में से प्रथमानुयोग का आदिपुराण सबसे प्रधान ग्रन्थ है। आदिपुराण में कुल बारह हजार श्लोक हैं। उत्तर पुराण में आठ हजार श्लोक हैं। महापुराण के श्लोकों की संख्या बीस हजार है। आदिपुराण में सैंतालीस पर्व या अध्याय हैं जिनमें बयालीस पर्व पूरे हैं। 43वें पर्व के तीन श्लोक ही जिनसेनाचार्य लिख पाये थे कि उनका देहोत्सर्ग हो गया। शेष पाँच पर्व (1620 श्लोक) उनके शिष्य गुणभद्राचार्य ने पूर्ण करके अपनी गुरु भक्ति का सुन्दर परिचय दिया।
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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