________________
आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप... 215
(क) अनशन तप205
मर्यादित समय तक या जीवन के अन्त तक सभी प्रकार के आहार का त्याग करना अनशन है। अशन (अन्न), पान (जलादि पेय पदार्थ) खादिम (मेवा, मिष्ठान्नादि) तथा स्वादिम मुख को सुवासित करने वाले इलायची, सुपारी आदि – इन चारों प्रकार के पदार्थों को "अनशन" शब्द से ग्रहण किया जाता है और अनशन का अभिप्राय है, इन चारों प्रकार के भोज्य पदार्थों का त्याग।206
अनशन तप तब कहलाता है जब शरीर के साथ-साथ आत्मशुद्धि का भी लक्ष्य हो, अपचादि की दशा में भोजन-त्याग अनशन तो है, परन्तु अनशन तप नहीं है।207
समय सीमा की दृष्टि से अनशन तप के मुख्य दो भेद कहे गये हैं - (क) इत्वरिक अनशन तप - (काल की निश्चित मर्यादा सहित) (ख) यावत्कथिक अनशन तप - (जीवन भर के लिए किया जाने वाला
अनशन)। (क) इत्वरिक अनशन तप - इस तप को सावकांक्ष तप भी कहा जाता है, इसमें एक निश्चित समय पूरा होने के बाद भोजन-प्राप्ति की आकांक्षा अथवा इच्छा रहती है। प्रक्रिया की दृष्टि से इसके छह भेद हैं - श्रेणी तप, प्रतर तप, घनतप, वर्गतप, वर्गवर्गतप, प्रकीर्णक तप। तथापि इसमें प्रकीर्णक तप के भेदों में निम्नलिखित तप का विशेष महत्त्व रखते हैं :
1. रत्नावली तप 2. कनकावली तप 3. मुक्तावली तप 4. लघुसिंह निष्क्रीडित तप 5. लघुसर्वतोभद्रतप 6. आयम्बिल वर्धमान तप (आचाम्लवर्धमान तप)208
इसके अतिरिक्त आदिपुराण में जिनेन्द्र गुण सम्पत्ति और श्रुतज्ञान नामक दोनों तप भी आते हैं।209
रत्नावली तप
रत्नावली एक आभूषण विशेष होता है। उसकी रचना के समान जिस तप का आराधन किया जाये उसको रत्नावली तप कहते हैं।209 यह रत्नावली तप आत्मा को विभूषित करता हैं रत्नावली210 तप पूर्ण करने में 5 वर्ष 2 महीने 28 दिन लगते हैं। ये तप चार बार में समाप्त होता है। प्रथम परिपाटी में एक वर्ष तीन मास बाईस दिन लगते हैं।2।।