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________________ आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप,.... 203 (घ) आदान निक्षेपण समिति प्रत्येक वस्तु को सावधानी, भली- भान्ति देखकर, प्रमार्जित करके उठाना या रखना, आदान निक्षेपण समिति है। 7 (ङ) परिष्ठापन समिति - अनुपयोगी वस्तु तथा शरीर के मलादि को देखभाल कर एकान्त स्थान, जीव रहित ऐसे प्रासुक स्थान में डालना, जिससे किसी दूसरे प्राणी को कष्ट, क्लेश न हो, यह परिष्ठापन समिति है। - आदिपुराण में तीन गुप्ति और पाँच समिति दोनों को मिलाकर इनका नाम आठ प्रवचन मातृकाएँ भी कहा जाता है। 8 9 3. धर्म धर्म शब्द बहुत व्यापक है, सम्पूर्ण जीवन ही इसके आयाम में समा जाता है। अतः इसकी परिभाषाएँ भी अनेक दी गई हैं। वस्तुतः धर्म शब्द धृ धारणे धातु से व्युत्पन्न हुआ है। इसका अर्थ है - जो धारण किया जाता है और जो दुर्गति से बचाता है वह धर्म है 1 90 ये अहिंसा, सत्य अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का पालन करना सभी सनातन धर्म कहलाते हैं। " प्राणियों पर अनुकम्पा करना, क्षमा धारण करना, लोभ का त्याग करना, सन्तोष करना, ज्ञान प्राप्त करना, विरक्त होनाये सभी धर्म कहे जाते हैं। 92 इसके विपरीत भाव रखना, दया न करना, झूठ बोलना, चोरी करना आदि सभी अधर्म हैं। शिष्यों को कुगति से हटाकर सुगति में लगाने या उत्तम स्थान में पहुँचाने को भी बुद्धिमान पुरुष धर्म कहते हैं। 3 आत्मस्वरूप की ओर ले जाने वाला तथा क्रमशः आत्मशुद्धि बढ़ाने वाला धर्म होता है। आदिपुराणकार ने धर्म को दश प्रकार कहा है - 1. उत्तम क्षमा 6. उत्तम संयम 2. उत्तम मार्दव 7. उत्तम तप 3. उत्तम आर्जव 8. उत्तम त्याग 4. उत्तम शौच 9. उत्तम आकिंचन्य 5. उत्तम सत्य 10. उत्तम ब्रह्मचर्य95 1. उत्तम क्षमा क्रोध पर विजय पाना, क्रोध के कारण उपस्थित होने पर भी शान्ति, सहिष्णुता बनाये रखना । " - 2. उत्तम मार्दव अभिमान पर विजय पाना, अहंकार के कारण उत्पन्न होने पर भी अहंकार न करना, विनम्र एवं विनीत बनकर रहना। 7 -
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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