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________________ जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण (क) मनोगुप्ति - मनोयोग को दुष्ट संकल्पों, विचारों से रहित रखना, मन में दुर्ध्यान और दुश्चिन्तन न होने देना मनोगुप्ति है। 202 (ख) वचन गुप्ति वचन योग को शान्त रखना वचन योग का दुष्प्रयोग न करना, विवेकपूर्वक अथवा मौन का आलम्बन लेना वचन गुप्ति है। (ग) कायगुप्ति काय योग का नियमन तथा निश्चलन काय गुप्ति है । यहाँ गुप्ति निवृत्ति रूप है, प्रवृत्ति रूप नही है। गुप्ति में मन, वचन, काय इन तीनों के अशुभ योगों का निरोध करना ही मुख्य है। " " - 2. समिति समिति अर्थात् सम्यक् प्रवृत्ति, ये कर्म प्रवेश के निरोध के बाह्य उपाय है। चलने-फिरने में, बोलने चालने में, आहार ग्रहण करने में, वस्तुओं को उठाने - रखने में और मलमूत्र निक्षेपण करने में विवेकपर्ण सम्यक् प्रकार से प्रवृत्ति करते हुए जीवों की रक्षा करना समिति है। 82 समिति पाँच प्रकार की कही गई है। (क) ईर्या समिति (ख) भाषा समिति (ग) एषणा समिति (घ) आदान निक्षेपण समिति (ङ) परिष्ठापन या सम्यक् उत्सर्ग - यह पाँच समिति की गई हैं। 83 (क) ईर्या समिति छह काय (पाँच स्थावर और त्रस) के जीवों की रक्षा तथा उनकी दया के विचार से भूमि को भली- भान्ति देखकर ( चलते समय आगे देकर ) शान्तिपूर्वक धीरे-धीरे गमन करना, चलना ईर्या समिति है और सावधानी पूर्वक चलना भी ईर्या समिति है| 84 - (ख) भाषा समिति - हितकारी (जीवों के लिए कल्याणकारी) मित (परिमित), सत्य और सन्देहरहित, विनम्र वचन बोलना तथा विवेकपूर्वक भाषा बोलना भाषा समिति है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सत्य वचन भी कटु न हों, जिससे सुनने वाले को दुःख पहुँचे। जैसे काणे को काणा कहने से उसे दुःख होता है। इसलिए सत्य होते हुए भी काणे को काणा न कहें। कटु, कठोर, मर्मघाती भाषा का प्रयोग सत्य को भी दूषिक कर असत्य" कोटि में पहुँचा देता है। 85 44 (ग) एषणा समिति भिक्षा आवश्यक साधन जो जीवन यात्रा के लिए अनिवार्य हों, निर्दोष गवेषणा करके उन्हें प्राप्त करने का प्रयास करना एषणा समिति है। 86
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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