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आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप... 201
प्रकार का प्रतिबन्ध आस्रवण को अवरुद्ध करता है और यही संवर है। यदि किसी जलाशय को खाली करना हो तो जल को बाहर निकालने का प्रयत्न पर्याप्त नहीं होता। हाँ यह भी अत्यावश्यक है। किन्तु जलाशय खाली तो तभी होगा; जब उसके जलपूर्ति के मार्गों (नालों आदि) को पहले बन्द कर दिया जाये। संवर इन नालों को बन्द करने के प्रयत्न के समान ही है।
संवर के प्रकार
संवर के दो प्रकार कहे जाते हैं
(क) भाव संवर (ख) द्रव्य संवर।। भाव संवर
__ संसार के निमित्त भाव क्रिया की निवृत्ति होना भाव संवर है72 अथवा कर्मों के पुद्दगलों के आस्रव को रोकने में जो आत्मा के भाव निमित्त बनते हैं। वह आत्म-परिणाम भावसंवर है।73
द्रव्य संवर
भाव संवर का निरोध होने पर तत्वपूर्वक होने वाले कर्म पुद्गल के ग्रहण का विच्छेद होना द्रव्य संवर है।74 जो द्रव्यास्रव को रोकने में कारण है वह भी द्रव्य संवर है।5 .
आदिपुराणकार ने भाव संवर के षट् हेतु बताये हैं/6 - 1. गुप्ति, 2. समिति, 3. धर्म, 4. अनुप्रेक्षा, 5. परीषह, 6. चारित्र।
1. गुप्ति
___ गुप्ति अर्थात् रक्षा करना। गुप्तिा का अभिप्राय है - गुप्त करना, रोकना, निश्चल करना अथवा शान्त करना।
कायिक, वाचिक तथा मानसिक क्रिया के सहयोग से कर्मपुद्गल आत्मा में प्रवेश करते हैं, इसी प्रवेश के निग्रह को गुप्ति कहते हैं। अथवा योगों की विवेकपूर्वक यथेच्छ प्रवृत्ति को रोकना गुप्ति है।9
गुप्ति तीन प्रकार की कही गई है - (क) मनो गुप्ति (ख) वचन गुप्ति (ग) काय गुप्ति।