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आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप... 199 2. वचन योग
वचन की प्रवृत्ति को वचन योग कहा जाता है। इसके भी चार प्रकार हैं
(क) सत्य वचन योग (ख) असत्य वचन योग (ग) मिश्र वचन योग (घ) व्यवहार वचन योग।
3. काय योग
कायिक अथवा काय सम्बन्धी प्रवृत्ति। इसके उत्तर 7 भेद हैं
(क) औदारिक काययोग (ख) औदारिक मिश्र काययोग (ग) वैक्रिय काययोग (घ) वैक्रिय मिश्र काययोग (ङ) आहारक काययोग (च) आहारक मिश्र काययोग (छ) कार्मण काययोग।
समीक्षा
___ शुभ कर्म पुण्य का आस्रव है और अशुभ कर्म पाप का आस्रव है। जीवरूपी तालाब में आम्रवरूपी नाला से कर्मरूपी पानी आवे, जिससे आत्मा मलिन और भारी होकर संसार में जन्म मरण, जरा, रोग, शोक आधि-व्याधि, अशुभ कर्म बन्ध भोगता फिरे, वे आस्रव तत्त्व हैं। जैसे - नौका में छिद्र के द्वारा पानी आता है, उसी प्रकार आत्मा में योग (मन, वचन, काय और कषाय, क्रोध, मान, माया, लोभ) के द्वारा कार्मण वर्गणा के पुद्गलों का आना आस्रव कहलाता है। जिस प्रकार पानी आने से नौका भारी हो जाती है उसी प्रकार कर्मों के आगमन से आत्मा भारी हो जाती है, संसार सागर में डूब जाती है। मिथ्यात्व अव्रत, प्रमाद, कषाय और योग इन कारणों से आस्रव कर्म का बन्ध होता है।