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7-10 कषाय
आश्रव है।
11-14 विकथा स्त्री कथा, भोजन कथा, राज कथा, देश कथा इन चारों निरर्थक और पापकारी कथाओं को करना, कहना सुनना विकथा है।
15 निद्रा
आलस्य, नीन्द, सुस्ती में पड़े रहना निद्रा प्रमाद है। 56
जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण
क्रोध, मान, माया, लोभ चारों कषायों में प्रवृत्ति करना
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4. कषाय
कषाय शब्द दो शब्दों के मेल से बना है। " कष" और आय"। कष का अर्थ संसार है। क्योंकि इसमें प्राणी विविध दुःखों के द्वारा कष्ट भोगता है, पीड़ा को प्राप्त होता है। आय का अर्थ है लाभ । जिनके द्वारा संसार की प्राप्ति (जन्म मरण) हो, वे कषाय हैं। 57 क्रोध, मान, माया, लोभ ये चार कषाय है। 58 आत्मा के सहज स्वरूप को हानि पहुँचाने वाली बुरी प्रवृत्तियां कषाय हैं।
1. मनोयोग
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अनिगृहीत कषाय पुनर्भव के मूल को सींचते रहते हैं। उसे शुष्क नहीं होने देते। कषाय, कर्मों का उत्पादक है। जो दुःख रूप धान्य को पैदा करने वाले कर्मरूपी खेत का कर्षण करते हैं, जोतते हैं, फलवान् करते हैं, वे क्रोध मानादि कषाय हैं।” कषाय को कृषक की उपमा देते हुए कहा गया है कि यह एक कृषक है, जो चारों गतियों को मेढ़ वाले कर्म रूपी खेत को जोत कर सुख-दुःखरूपी अनेक प्रकार के धान्य उत्पन्न करते हैं। 60
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5. योग
योग का अर्थ है - प्रवृत्ति। यह शुभ और अशुभ दोनों प्रकार की होती है । मन, वचन और काय के निमित्त से आत्मा के प्रदेशों में जो परिस्पन्दन होता है, वह योग है। मन, वचन, काय से होने वाली आत्मा की क्रिया, कर्म परमाणुओं के साथ आत्मा का सम्बन्ध योग है । 1 योग के 15 भेद कहे गये हैं 102
इसके मुख्य रूप से 3 भेद हैं और उत्तर भेद 15 हैं। 63 1. मनोयोग, 2. वचनयोग, 3. काययोग ।
यह मन की (मानसिक) प्रवृत्ति है। इसके 4 भेद हैं
(क) सत्य मनोयोग (ख) असत्य मनोयोग (ग) मिश्र मनोयोग (घ) व्यवहार मनोयोग 04 |
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