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________________ 192 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण 4. अब्रह्मचर्य कामराग के वशीभूत होकर स्त्री-पुरुष द्वारा परस्पर कामुक चेष्टाएँ करना अब्रह्मचर्य है। इसका दूसरा नाम मैथुन भी है। 9 5. परिग्रह - किसी वस्तु पर ममत्व या आसक्ति का होना ही परिग्रह है | 20 यह परिग्रह दो प्रकार का होता है- (क) बाह्य परिग्रह (ख) आभ्यन्तर परिग्रह 21 बाह्य परिग्रह में खेत, मकान, (क) बाह्य परिग्रह कामिनी, वाहन आदि ये सभी बाहय परिग्रह हैं। - (ख) आभ्यन्तर परिग्रह आभ्यन्तर परिग्रह में ममत्व मूर्च्छा, आसक्ति आदि ये आभ्यन्तर परिग्रह है परिग्रह के अनेक भेद होते हुए भी आसक्ति रूप परिग्रह मूलतः एक है। 22 - 6. क्रोध क्रोध का अर्थ गुस्सा, रोष, कोप होना है। क्रोध मोहनीय कर्म के उदय से होने वाला कृत्य - अकृत्य के विवेक को हटाने वाला एवं प्रज्वलन स्वरूप आत्मा के परिणाम को क्रोध कहते हैं। क्रोधवश आत्मा किसी की बात को सहन नहीं करता और बिना विचारे अपने तथा पराये अनिष्ट के लिये प्रस्तुत हो जाता है। आत्मा की ऐसी परिणति को क्रोध कहा जाता है। 23 - 7. मान मान का अर्थ अहंकार है । जाति- कुल आदि विशिष्ट गुणों के कारण आत्मा में जो अहंकार जागृत होता है, उसे मान कहते हैं। 24 - धन, धान्य, 8. माया जीव में उत्पन्न होने वाले कपट आदि भावों को ही माया कहा जाता है। कपट, छल, माया, धोखा और ठगना ये सभी माया के पर्याय हैं। माया अपने दोषों पर पर्दा डालती है, मैत्री भाव का नाश करती है और बुराईयों का आह्वान करती है। 25 - 9. लोभ लोभ का अर्थ तृष्णा, लालसा है। खाने कमाने में, भोग-विलास में, अनावश्यक आसक्ति का होना लोभ है। लोभ गुणों का विनाश और अवगुणों को पैदा करता है | 26 - 10. राग अवगुणों का ज्ञान होने पर भी उसका परित्याग न करना राग है। अथवा माया और लोभ जिसमें अव्यक्त रूप से विद्यमान हों, ऐसा आसक्ति रूप जीव का अवगुण ही राग है। 27
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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