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________________ 178 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण = एक पल्योपम = एक सागर असंख्य वर्ष 10 क्रोडाकोड़ पल्योपम 20 कोड़ाक्रोड़ सागर अनन्त काल चक्र = एक कालचक्र = एक पुद्गल परावर्तन 56 पूर्वाङ्ग, पूर्व, पर्वाङ्ग, पूर्वाङ्ग आदि चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वाङ्ग होता है। चौरासी लाख का वर्ग करने अर्थात् परस्पर गुणा करने से जो संख्या आती है उसे पूर्व कहते हैं।।57 (8400000 x 8400000 = 70560000000000) इस संख्या में एक करोड़ का गुणा करने से जो लब्ध आवे उतना एक पूर्व कोटि कहलाता है। पूर्व की संख्या में चौरासी का गुणा करने पर जो लब्ध हो उसे पूर्वाङ्ग कहते हैं तथा पर्वाङ्ग में पूर्वाङ्ग अर्थात् चौरासी लाख गुणा करने पर जो लब्ध हो उसे पर्वाङ्ग कहते हैं तथा पर्वाङ्ग में पूर्वाङ्ग अर्थात् चौरासी लाख का गुणा करने से पर्व कहलाता है।158 इसके आगे जो नयुताङ्ग नयुत आदि संख्याएँ कहीं हैं उनके लिए भी क्रम से यहीं गुणाकार करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि पर्व को चौरासी से गुणा करने पर नयुताङ्ग, नयुताङ्ग को चौरासी लाख से गुणा करने पर नयुत; नयुत को चौरासी से गुणा करने पर कुमुदाङ्ग, कुमुदाङ्ग को चौरासी से गुणा करने पर कुमुद; कुमुद को चौरासी से गुणा करने पर पद्माङ्ग और पद्माङ्ग को चौरासी लाख से गुणा करने पर पद्म; पद्म को चौरासी से गुणा करने पर नलिनाङ्ग और नलिनाङ्ग को चौरासी लाख से गुणा करने पर नलिन होता है। इसी प्रकार गुणा करने पर आगे की संख्याओं का प्रमाण निकलता है।159 अब क्रम से उन संख्या भेदों के नाम कहे जाते हैं जो कि अनादिनिधन जैनागम में रुढ़ हैं।160 पूर्वाङ्ग, पूर्व पर्वाङ्ग, पर्व, नयुताङ्ग, नयुत कुमुदाङ्ग, कुमुद, पद्माङ्ग, पद्म, नलिनाङ्ग, नलिन, कमलाङ्ग, कमल, तुटयङ्ग, तुटिक, अटटाङ्ग, अटट, अममाङ्ग, अमम, हाहाङ्ग, हाहा, हूह्वङ्ग, हूहू, लताङ्ग, लता, महालताङ्ग, महालता, शिरः प्रकम्पित, हस्तप्रहेलित और अचल ये सब उक्त संख्या के नाम हैं, जो कि कालद्रव्य की पर्याय है। यह सब संख्येय हैं - संख्यात के भेद हैं इसके आगे का संख्या से रहित असंख्यात है।161 समीक्षा काल के संदर्भ में जैन साहित्य में दो विचार हैं। एक मत के अनुसार काल स्वतन्त्र द्रव्य नहीं हैं। "काल" जीव और अजीव द्रव्य का पर्याय प्रवाह
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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