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जैन धर्म के अनुयायियों में रूप से दो भेद हैं-श्वेताम्बर और दिगम्बर क्रियाकाण्ड और आचार व्यवहार विषयक मतभेदों को एक ओर रखने पर इन दोनों परम्पराओं का धार्मिक एवं दार्शनिक सहित्य प्रायः पूर्णतः समान है।
दिगम्बर परम्परा के चार अनुयोगों में से प्रथमानुयोग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रथमानुयोग में 'आदिपुराण' प्रधान ग्रन्थ है। इसमें कथाओं के माध्यम से जटिल दार्शनिक तत्त्वों पर सटीक व्याख्यान उपलब्ध होता है। इस पुराण के अध्ययन से पता चलता है कि सभी आगमों का सार इसमें निहित है। आदिपुराण का महत्त्व समझकर ही मेरे मन में संकल्प उभरा कि इस पर शोध किया जाये। इस पर भी दार्शनिक तत्त्वों का "एक समीक्षात्मक अध्ययन" किया जाये। जैनागमों में बिखरी दार्शनिक समस्त सामग्री का सरल्येन अध्ययन किसी को करना है तो मेरा यह मानना है कि उसे इस पुराण का अध्ययन करना चाहिए। इसी पुराण साहित्य को कायम रखने के लिये तथा पुनर्जीवित करने के लिए श्वेताम्बर परम्परा की महाप्रज्ञा साध्वी सुप्रिया ने मेरे विचार से सहमति दिखायी और आदिपुराण ग्रन्थ पर शोध करने का निश्चय किया। अभी तक जैन धर्मावलम्बियों को यह मालूम नहीं है कि यह पुराण जैन धर्म दर्शन से सम्बन्धित है या सनातन धर्म से। यही कारण है कि आज वह उद्भावना शोध-प्रबन्ध के रूप में प्रकाशित होकर पाठकों के सामने प्रस्तुत है।
मेरे संकल्प अथवा साध्वी डॉ. सुप्रिया जी म. के कठिनश्रम के प्रतिफल रूप में प्रस्तुत यह शोध-ग्रन्थ प्रायः स्मरणीया तप-त्याग की महामूर्तियाँ उग्रतपस्विनी महासती श्री सुमित्रा जी म. एवं दीप्त तपस्विनी महासती श्री सन्तोष जी म. की सद्प्रेरणा, अपार कृपा एवं आशीर्वाद के परिणाम स्वरूप यह कृति समाज को समर्पित होने जा रही है। दोनों महान् तपस्विनी महासाध्वियों की यह सतत् प्रयत्न रहा है कि हमारी शिष्या परम्परा में सभी साध्वियाँ पढ़ी लिखी और जैन सिद्धान्त के स्वारस्य को समझने में सक्षम हो। वैसे भी इनकी शिष्याओं में आज तक तीन साध्वियाँ तो डबल एम.ए. पी.एच.डी. की उपाधि को धारण किए हुये हैं। भविष्य में यह धारा उनके मंगलाशीर्वाद से निरन्तर बहती रहेगी, ऐसी मेरी पूर्ण आशा है।
धीर, गम्भीर साध्वी डॉ. सुप्रिया जी ने मोक्ष पथारूढ़ होकर अपने जीवन के अमूल्य क्षणों को व्यर्थ न गवाँकर सार्थक किया है। गुरुणी जी म. चरणाम्बुजों में रहकर अनेक गुणों को अनपे जीवन रूपी गुलदस्ते में संजोया है। समय का सदुपयोग, अनुशासन बद्धता, सेवा-भावना, सहजता, समर्पणता, स्वाध्यायशीलता आदि अनेक गुण विद्यमान है।