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चतुर्थ अध्याय आदिपुराण में अजीव तत्त्व विमर्श .
अजीव तत्त्व और उसके भेदोपभेद
जीव तत्त्व का प्रतिपक्षी अजीव तत्त्व है।' अजीव शब्द अनात्मा की तरह, जीव का निषेध परक है। जो जीव नहीं है वह अजीव। जिसमें चेतना गुण का पूर्णतया अभाव है, जिसे सुख-दुःख की अनुभूति नहीं होती है वह अजीव द्रव्य है।
अजीव के भेद
अजीव तत्त्व के पाँच भेद हैं - 1. धर्म 2. अधर्म 3. आकाश 4. पुद्गल 5. काल।
यहाँ काल को छोड़कर सभी अस्तिकाय विशेषण से जाने जाते हैं जैसे-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय इत्यादि रूप से।
जिन द्रव्यों में बहुत से प्रदेश हों, वे अस्तिकाय कहलाते हैं।
"अस्ति" शब्द क्रिया नहीं, "अव्यय" है। इसका अभिप्राय हैं सत्ता या सद्भावत्व। अस्तिकाय का अर्थ है वे द्रव्य जो अस्तित्ववान् हैं और साथ ही बहुप्रदेशी भी हैं। धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल ऐसे ही द्रव्य हैं, जो अस्तिकाय भी है।
जीव की तरह यह अजीव भी अस्तिकाय हैं अर्थात् बहुप्रदेश-व्यापी शरीर वाला है। धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल तथा काल ये पाँच अजीव तत्त्व हैं। लेकिन, काल अस्तिकाय नहीं। इसी प्रकार पुद्गल भी मूलतः एक प्रदेश रूप है प्रदेशों का प्रचय नहीं। पुनरपि इस पुद्गल के प्रत्येक गुण में प्रचयरूप होने की शक्ति है। इसीलिए इसकी गणना अस्तिकाय में हैं।
__ 1. धर्म : धर्म का लक्षण - जीव और पुद्गलों के गमन में जो सहायक कारण होता है उसे धर्म कहते हैं।