________________
(vi)
साध्वी सुप्रिया की अध्ययन के प्रति रूचि व उत्साह देखकर हमें बहुत प्रसन्नता होती कि जबसे हमारे पास आई है हमेशा ज्ञान-ध्यान, स्वाध्याय में ही लीन रही है। इसे पढ़ाई के सिवाय कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। साध्वी सुप्रिया को बातों में बिल्कुल भी रूचि नहीं। न ही कभी इसने बातों में अपने अमूल्य समय को व्यर्थ गंवाया है। हमारी हार्दिक उत्कण्ठा है कि हमने इसे एक परम विदुषी साध्वी-रत्ना बनाना है। हमारी होनहार सेवाभावी विदुषी शिष्या डॉ. सुनीता जी की तरह इसे शोध कार्य करवाया जाए। साध्वी सुप्रिया ने संस्कृत में डबल एम. ए. पंजाब यूनिवर्सिटी से अच्छे अंकों में उत्तीर्ण की। फिर जैन दर्शन पर शोध -कार्य पंजाब यूनिवर्सिटी, चण्डीगढ़ से प्रारम्भ किया। यह शोध-कार्य विद्वदरत्न डॉ. श्री प्रेम लाल शर्मा, श्वेिश्वरानन्द शोध-संस्थान होशियारपुर के कुशल निर्देशन में सम्पन्न हुआ। जिन्होंने अपना सराहनीय योगदान प्रदान किया। हम उनके भी धन्यवादी हैं।
साध्वी सुप्रिया ने विनम्रता, सहनशीलता, लग्नशीलता, सहजता, गम्भीरता, सेवा-भावना आदि अनेक गुणों को अपने जीवन में संजोया हुआ है। ज्ञान-आराधना के साथ-साथ तप के क्षेत्र में भी प्रगतिशील रही है। कमठ परिश्रमशीला, अध्ययनशीला ने ही इन्हें इस लक्ष्य तक पहुँचाया है।
हमारी तो यही हार्दिक मंगल मनीषा है कि विदुषी डॉ. साध्वी सुप्रिया दिन-प्रतिदिन ज्ञान, ध्यान, तप-त्याग एवं संयम साधना में उत्तरोत्तर वृद्धि करती रहें। इस ग्रन्थ प्रकाशन के विषय में यही कहना चाहती हैं कि यह ग्रन्थ साध्वी जी के अत्यन्त कठोरश्रम एवं निरन्तर प्रयत्नशीलता का सुपरिणाम है हमें पूर्ण विश्वस है कि डॉ. साध्वी सुप्रिया जिनशासन की महत्ती प्रभावना एवं जिनवाणी का गहन चिनतन मनन करते हुए स्वाध्याय में सदैव जुटी रहें। बालबह्मचारिणी महासती गुरुणी "श्री चन्दा जी म." की फुलवाड़ी को महकाती रहें, यही हमारा हार्दिक मांगलिक अन्त:करण का आशीर्वाद है तथा श्रमण संघ की गरिमा में अभिवृद्धि करें हमारी यही शुभ कामनाएँ मंगल भावनाएं हैं।
- साध्वी सन्तोष-सुमित्रा