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________________ हार्दिक मंग मनीषा जैन संस्कृति श्रम प्रधान संस्कृति रही है इसीलिये इसे श्रमण संस्कृति भी कहा जाता है। श्रमण संस्कृति भौतिक चकाचौंध अर्थात् भौतिक साधनों ऊँचे महलों, भव्य भवनों सोने-चाँदी के अम्बारों और बहुमूल्य वस्त्रों को महत्व नहीं देती बल्कि यह मानव की आन्तरिक साधना व उच्च विचारों पर बल देती है। वास्तव में श्रमण संस्कृति में श्रमण अथवा श्रमणी के जीवनकाल में संयम साधना का जितना महत्त्व है, उतना ही महत्त्व त्याग, तप और ज्ञान आराधना का भी है। ज्ञान अर्जित करना जीवन में बहुत आवश्यक है। ज्ञान के बिना साध क का जीवन अधूरा है। इसीलिये कहा गया है - "अन्धकार है वहाँ, जहाँ आदित्य नहीं है, अन्धकार है वहाँ, जहाँ साहित्य नहीं है।" जहाँ सूर्य का प्रकाश नहीं वहाँ सिवाय अन्धकार के और क्या हो सकता है और जहाँ साहित्य नहीं, वहाँ सिवाय अज्ञानान्धकार के और कुछ नहीं होता। हमारी दोनों बहनों की सदैव तीव्र अभिलाषा रही है कि हमारे पास कोई वैरागन आये जितना वह अध्ययन करना चाहे हम अवश्य करवायेंगे। हम तो किसी कारणवश अधिक नहीं पढ़ सके किन्तु आने वाली वैरागनों को उच्च शिक्षा दिवायेंगे। __ अचानक हमारी संसारी भांजी सिरसा से हमारे पास दर्शन करने आई। उसके संयम के भाव बनते देर न लगी। क्योंकि हमारी संसारी बहन धर्मपरायण श्री सत्य देवी जैन धर्मपत्नी श्री जैन प्रकाश जैन नाहटा जो बहुत ही धार्मिक विचारों वाली सदैव धर्मध्यान सामायिक संध्या से जिनका जीवन ओत-प्रोत है। ऐसे संस्कारित परिवार से धर्म के प्रति बहुत ही सुदृढ़ थी। वैरागन मन्जू हमारे पास आ गई। भरी यौवनावस्था में संसारिक बन्धनों को छोड़कर संयम पथ अंगीकार किया है। साध्वी मन्जू घर से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीण करके आई थी बाकी सारी शिक्षा बी.ए., एम.ए. हमने पंजाबी यूनिवर्सिटी से बहुत परिश्रम से करवाई। मन्जू का साध्वी जीवन का नाम हमने सुप्रिया रखा है।
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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