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________________ 138 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण पाँचवें सर्वार्थसिद्ध विमान की अजघन्योत्कर्ष आयु 33 सागरोपम की होती है।165 सर्वार्थसिद्ध का स्वरूप सर्वार्थसिद्ध विमान लोक के अन्तिम भाग से बारह योजन नीचा है, यह सर्वार्थ सिद्ध विमान लोक के सबसे अग्र भाग में स्थित है और सबसे उत्कृष्ट है। इस सर्वार्थ सिद्ध विमान की लम्बाई, चौड़ाई और गोलाई जम्बूद्वीप के बराबर है। सर्वार्थसिद्ध विमान स्वर्ग के तिरेसठ पटलों के अन्त में चूड़ामणि रत्न (बहूमूल्य रत्न) के समान स्थित हैं।166 इस विमान में उत्पन्न होने वाले जीवों की सभी मनोकामनाएँ अनायास ही सिद्ध हो जाती हैं। इसलिए इसका सर्वार्थसिद्धि नाम सार्थक है।167 सर्वार्थसिद्ध विमान के मध्य छत में एक चंदोवा 256 मोतियों का है। उन सब के बीच का एक मोती 64 मन का है। उसके चारों तरफ चार मोती 32-32 मन के हैं। इनके पास 8 मोती 16-16 मन के हैं। 16 मोती 8-8 मन के हैं। बत्तीस मोती 4-4 मन के हैं। 64 मोती 2-2 मन के हैं। 128 मोती एक एक मन के हैं। जब यह मोती हवा में आपस में टकराते हैं तो उनमें से छह राग और छत्तीस रागनियाँ निकलती हैं। जैसे-मध्याह्न का सूर्य सभी को अपने-अपने सिर पर दिखलाई देता है, उसी प्रकार यह चंदोवा भी सर्वार्थसिद्ध-निवासी सभी देवों को अपने-अपने सिर पर मालूम पड़ता है।।68 सर्वार्थसिद्ध में जाने के हेतु आदिपुराणकार ने बताया है कि जो साधक तत्त्वों का चिन्तन करता है, बारह भावनाओं (अनित्य, अशरणादि) को भाता है अर्थात् उन पर मनन करता है। जीवन के अन्तिम समय में शुभ विचारों या भावों को धारण करते हैं जिनकी लेश्याएँ बहुत विशुद्ध हो जाती हैं। शुभ पृथ्कत्व शुक्लध्यान को ध्याता हुआ और मोहनीय कर्म को उपशान्त करते हुए अन्त में उत्कृष्ट समाधिपूर्वक प्राण त्यागते हैं वे ही आत्माएँ सर्वार्थसिद्धि उत्कृष्ट विमान में उत्पन्न होती हैं। 69 " उपर्युक्त 12 स्वर्ग 9 ग्रैवेयक और 5 अनुत्तर विमान सब 26 स्वर्गों के कुल 62 प्रतर और 8497023 विमान हैं। सभी विमान रत्नमय हैं। वे सब अनेक स्तम्भों से परिमण्डित, भान्ति भान्ति के चित्रों से चित्रित, अनेक टियों और लीलायुक्त पुतलियों से सुशोभित, सूर्य के समान जगमगाते हुए और सुगन्ध से मघमघायमान हैं। प्रत्येक विमान के चारों ओर बगीचे हैं जिनमें रत्नमय
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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