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आदिपुराण में नरक-स्वर्ग विमर्श
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देवों में काम-भोग की प्रवृत्ति
सातवें देवलोक के देवताओं को जब काम भोग की इच्छा जागृत होती है, तब वे पहले देवलोक की अपरिगृहीता देवियों के अंगोपांग को देखने मात्र से ही तृप्त हो जाते हैं। उन देवियों की आयु 20 पल्योपम से एक समय अधिक से 30 पल्योपम तक होती है। वे देवियाँ ही सातवें देवलोक के देवों के भोग में आती है।।4। 8. सहस्रार देवलोक
सातवें देवलोक की सीमा से पाव रज्जु ऊपर सात रज्जु घनाकार विस्तार में जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के बराबर मध्य में घनवात और घनोदधि के आधार से, आठवाँ सहस्रार देवलोक अवस्थित है। इसका आकार पूर्ण चन्द्र के समान है। देवों में भोग प्रवृत्ति
इस देवलोक के देवता ईशान नामक दूसरे देवलोक की अपरिगृहीता देवियों को देखने मात्र से ही काम-भोगों की तृप्ति कर लेते हैं। वे 25 पल्योपम से समयाधिक और 35 पल्योपम तक की आयु वाली देवियों का भोग करते हैं। अर्थात् आठवें देवलोक के देव उन देवियों के अंगोपांगों को देखने से ही तृप्त हो जाते हैं और आठवें देवलोक वाले देव पहले दूसरे देवलोक की अपरिगृहीता देवियों को अपने स्थान पर ले जा सकते हैं।।42 9-10 आणत प्राणत देवलोक
आठवें देवलोक की सीता से पाव रज्जु ऊपर 12 रज्जू घनाकार विस्तार में मेरु से दक्षिण दिशा में नौवा-दसवाँ आणत-प्राणत देवलोक स्थित है।143 प्राणत देवलोक में जाने के हेतु
प्राणत स्वर्ग में वही जीव उत्पन्न हो सकते हैं जो व्यक्ति जीवन में मर्यादा करते हैं और विषय भोगों से विरक्त होकर जो संयम धारण करते हैं अर्थात् गृहस्थ धर्म को छोड़कर मोह, माया, परिवार, घर बार का त्याग करते हैं और अपने जीवन को तप में लगा लेते हैं, कनकावली जैसे महान तप को धारण करते हैं वे मरकर प्राणत स्वर्ग में इन्द्र बनते है।।44 ____संयम (पाँच महाव्रत का धारक) पालने वाला और अनेक प्रकार के तपों को करने वाला साधक अन्तिम अवस्था में शरीर त्याग कर प्राणत स्वर्ग में उत्पन्न होता है और सुखपूर्वक आयु का भोग करता है। 45