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________________ 128 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण 3. सनत्कुमार देवलोक सौधर्म और ईशान देवलोकों की सीमा के ऊपर 16 रज्जू घनाकार विस्तार में घनवात (जमी हुई हवा) के आधार पर जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत पर दक्षिण दिशा में तीसरा सनत्कुमार देवलोक स्थित है। इस लोक का आकार आधे चन्द्रमा के समान है। भोग विलास इस देवलोक के देव, मनुष्यों या पहले और दूसरे देव लोक के देवों की तरह काम-भोग नहीं करते। वे देवियों के स्पर्श मात्र से अपनी इच्छा पूर्ण कर लेते हैं। सनत्कुमार देवलोक के देव सौधर्म देवलोक की अपरिगृहीता देवियों के स्पर्शमात्र से ही अपने भोगों की तृप्ति कर लेते हैं। उन देवियों की आयु एक पल्योपम से एक समय अधिक से दस पल्योपम तक होती है।128 ___ इस देवलोक में देवियाँ उत्पन्न नहीं होती। 4. महेन्द्र देवलोक सौधर्म और ईशान दोनों देवलोक की सीमा के ऊपर 16 रज्जु घनाकार विस्तार में घनवात् (जमी हुई हवा) के आधार पर, जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से उत्तर दिशा में स्थित है। महेन्द्र देवलोक का आकार अर्धचन्द्र के समान है। देवताओं में भोग विलास की इच्छा महेन्द्र देवलोक के देवता दूसरे देवलोक की अपरिगृहीता देवियों का, जिनकी आयु एक पल्योपम से एक समय से अधिक और पन्द्रह पल्योपम तक की आयु वाली है। उनका स्पर्श करने मात्र से ही तृप्त हो जाते हैं। अर्थात् उन्हें भोगों की तृप्ति स्पर्शमात्र से ही हो जाती हैं।।29 महेन्द्र देवलोक की प्राप्ति में हेतु पञ्चम पर्व में राजा शतबल ने भोगों को निसार जानकर अपने जीवन को धर्म में लगाया। सम्यग्दर्शन से श्रावक धर्म का पालन करते हुए सदाचरण को अधिमान दिया है और व्रतों का पालन करते हुए तप करते हुए समाधि-मरणपूर्वक शरीर का त्याग करके महेन्द्र स्वर्ग की प्राप्ति हुई। वहाँ उन्हें अनेकों प्रकार की ऋद्धियाँ भी प्राप्त होती हैं। उनकी आयु वहाँ सात सागर प्रमाण की होती है। 30
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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