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________________ आदिपुराण में नरक-स्वर्ग विमर्श विमानों की संख्या ईशान देवलोक में विमानों की संख्या अट्ठाइस लाख कही गई है। यह विमान 500 योजन ऊँचे हैं। 122 127 इन्द्राणियाँ ईशान देवलोक में इन्द्र की आठ इन्द्रानियाँ या अग्रमहिषियाँ होती हैं । । 23 परिगृहीता देवियाँ दूसरे देवलोक में रहने वाली परिगृहीता देवियों की जघन्य आयु एक पल्योपम से कुछ अधिक और उत्कृष्ट आयु नौ पल्योपम की है। दूसरे देवलोक से आगे के देवलोकों में देवियों की उत्पत्ति नहीं होती। प्रत्येक इन्द्राणी का सोलह सोलह हजार देवियों का परिवार है। 124 अपरिगृहीता देवियाँ दूसरे देवलोक में अपरिगृहीता देवियों के 4 लाख विमान हैं। इनमें रहने वाली देवियों की जघन्य आयु एक पल्योपम से कुछ अधिक है और उत्कृष्ट 55 पल्योपम की है। इनमें से एक पल्योपम की आयु वाली देवियाँ ही दूसरे देवलोक के देवों के परिभोग में आती हैं। 125 ईशान देवलोक में जाने के हेतु आदिपुराण पंचम पर्व में राजा महाबल ने अपना अन्तिम समय नजदीक जानकर राज्य के मोह का त्यागकर बाह्य और आभ्यान्तर परिग्रह को त्यागकर अपने मन को पञ्चपरमेष्ठी में लगाया। आत्मा और शरीर की भिन्नता को जानकर निरन्तर बाईस दिन तक संल्लेखना की विधि करते रहे। शुद्ध आत्म स्वरूप की भावना करते हुए अपना सारा समय धर्म ध्यान में ही लगाते हुए शरीर छोड़कर ईशान् नामक दूसरे देवलोक में बड़ी ऋद्धि के धारक ललिताङ्ग नामक उत्तम देव बने । 126 देवों में भोग-विलास की प्रवृत्ति ईशान देवलोक के देवता मनुष्यों के समान ही काम भोगों का सेवन करते हैं। ईशान स्वर्ग में महान ऋद्धियों का धारण करने वाले देव अनेक प्रकार के भोग विलास भोगते हैं अर्थात् स्वर्ग में सुख भोगने के लिए उत्पन्न होते हैं। 127
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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