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________________ आदिपुराण में नरक-स्वर्ग विमर्श 123 मध्यम परिषद् के देव होते हैं। अथवा जो मित्र और हंसी मस्करी करने वालों के समान सभा में बैठते हैं तथा जो सभा में प्रामाणिक माने जाते हैं उनको परिषद्य देव कहते हैं। 98 6. लोकपाल देव प्रजा के समान देवों का पालन करने वाले देव लोकपाल कहे जाते हैं। 99 अथवा जो प्रबल शक्ति सम्पन्न देवलोकों की सीमाओं के रक्षक प्रमुख सैनिक अधिकारी के रूप में नियुक्त हैं, वे लोकपाल देव कहलाते हैं। 100 7. अनीक देव 01 सेना के समान जो सात प्रकार के देव होते हैं उनको अनीक कहते हैं। वे अपने अपने पदानुसार अश्व, गज, रथ, बैल, पैदल 11 आदि का रूप बनाकर, यथोचित् रीति से इन्द्र के काम आते हैं। गन्धर्वों के समान अनीक देव मधुर गान - तान करते हैं। अनीक देव बत्तीस प्रकार का मनोरम नाट्य आदि करते हैं। 102 8. आभियोग्य देव देवगति में होने पर भी जो देव दास के समान वाहनादि बनकर उच्च देवों की अपने स्वामियों की सेवा करते हैं, उनको आभियोग्य देव कहते हैं। 9. प्रकीर्णक देव प्रजा के समान जो देव विमानों में रहते हैं, उनको प्रकीर्णक कहते हैं। 103 10. किल्विषिकदेव जैसे चाण्डाल आदि नीच जाति के मनुष्य होते हैं, वैसे ही सब देवों की घृणा के पात्र, कुरुप, अशुभ विक्रिया करने वाले, मिथ्यादृष्टि अज्ञानी देव किल्विषिक देव हैं तथा देव गुरु धर्म की निन्दा करने वाले और तप - संयम की चोरी करने वाले जीव मरकर किल्विषिक देव बनते हैं। 104 देवों में दुःख का कारण देवलोकों में अनन्त सुख होने पर देवों के दुःख का कारण फिर भी बना रहता है। देवों में ईर्ष्या-द्वेष अधिक होता है। मेरे से अधिक उस देव के पास ऋद्धि, क्रान्ति अधिक है। यही दुःख का कारण है। 105
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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