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________________ 122 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण 1. इन्द्र जैसे यहाँ राजा होते हैं, वैसे ही देवलोक में इन्द्र होते हैं। अन्य देवों में नहीं पाये जाने वाले असाधारण अणिमा महिमादि गुणों से जो परम ऐश्वर्य वाले माने जाते हैं, जिनकी आज्ञा अन्य देव शिरोधार्य समझते हैं, जो ऐश्वर्यगुण से युक्त हैं। ऐसे देव जिनेश्वर के द्वारा इन्द्र कहे जाते हैं। 3 2. सामानिक देव जैसे यहाँ राजाओं के उमराव होते हैं, वैसे ही 64 देवों के सामानिक देव होते हैं। ये देव इन्द्र तो नहीं, किन्तु इन्द्र के समान ही अन्य देव और देवियों के माननीय एवं पूज्य होते हैं। 94 सामानिक देव द्वारा ललिताङ्ग देव को बोध आदिपुराण में ललिताङ्ग देव को जब देवलोक में अपनी अवधि समाप्त होने के बारे में पता चलता है तो चिन्तित हो जाता है वह देवलोकों के सुखों को छोड़ना नहीं चाहता। तब उसे सामानिक देव बोध देने आता है कि स्वर्ग से च्युत होना सभी के लिए साधारण बात है। इसलिए शोक छोड़कर धर्म की शरण ग्रहण करो। धर्म से पुण्य और पुण्य से स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। । ललिताङ्ग ने धर्म का सहारा लिया, धर्म में बुद्धि को लगाया। पन्द्रह दिन तक समस्त जिन-चैत्यालयों की पूजा की और अच्युत स्वर्ग की जिन - प्रतिमाओं की पूजा करता हुआ अदृश्य हो गया। 5 3. त्रायस्त्रिंशक देव पुरोहित तथा महामंत्रियों के समान जो देव हैं तथा जिनकी संख्या तेतीस ही नियत रहती है, वे त्रायस्त्रिशक देव हैं। 96 4. आत्मरक्षक देव राजा के अंगरक्षकों के समान जो देव हाथ में शस्त्र धारण कर इन्द्र के पीछे रहते हैं उनको आत्मरक्षक देव कहते हैं। 97 5. पारिषद्य देव सलाहकार मन्त्री के समान इन्द्र की आभ्यन्तर परिषद् के देव होते हैं। वे इन्द्र के बुलाने पर ही आते हैं। कामदारों के समान श्रेष्ठ काम करने वाले
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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