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आदिपुराण में नरक-स्वर्ग विमर्श
स्वर्ग की परिभाषा
उपर्युक्त 26 देवलोक ही 26 प्रकार के स्वर्ग नाम से जाने जाते हैं। देवों के 4 भेदों में एक वैमानिक देव नाम का भेद है। ये देव ऊर्ध्वलोक के स्वर्ग विमानों में रहते हैं तथा बड़ी विभूति व ऋद्धि आदि को धारण करने वाले होते हैं। स्वर्ग के दो विभाग हैं. कल्प व कल्पातीत । इन्द्र सामानिक आदि रूप कल्पना भेदयुक्त देव जहाँ तक रहते हैं उसे कल्प कहते हैं। इनमें रहने वाले देव कल्पवासी कहलाते हैं। दिगम्बर परम्परा में कल्प देवों की संख्या सोलह बताई गई हैं- उनके नाम इस प्रकार हैं
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1. सौधर्म, 2. ऐशान 3. सनत्कुमार, 4. माहेन्द्र, 5. ब्रह्म, 6. ब्रह्मोत्तर, 7. लान्तव, 8. कापिष्ठ, 9. शुक्र, 10 महाशुक्र 11 शतार, 12. सहस्रार, 13. आणत, 14. प्राणत, 15. आरण, 16. अच्युत । " इसके ऊपर इन सब कल्पनाओं से अतीत, समान ऐश्वर्य आदि प्राप्त अहमिन्द्र संज्ञा वाले देव रहते हैं, वह कल्पातीत हैं। उनके रहने का स्थान स्वर्ग कहलाता है। इसमें इन्द्रक व श्रेणीबद्धादि विमानों की रचना है। इनके अतिरिक्त भी उनके पास घूमने फिरने को विमान हैं, इसीलिए वैमानिक संज्ञा भी प्राप्त है। बहुत अधिक पुण्यशाली जीव वहाँ जन्म लेते हैं और सागरों की आयुपर्यन्त दुर्लभ भोग भोगते हैं । "
स्वर्ग लोक की स्थिति
मनुष्य लोक से 900 योजन के ऊपर का भाग ऊर्ध्वलोक कहलाता है। ऊर्ध्वलोक में मुख्य रूप से देवों का निवास है। इसलिए इसे देव लोक, ब्रह्मलोक, यक्षलोक और स्वर्ग लोक भी कहते हैं । "
स्वर्गों में इन्द्रादि देवों के दस भेदों का वर्णन
6. लोकपाल देव
7. अनीक देव
8.
9.
10.
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1. इन्द्र
2. सामानिक देव
3. त्रायस्त्रिशक देव
4. आत्मरक्षक देव
5. पारिषद्य देव
आभियोग्य देव
प्रकीर्णक देव
किल्विषिक देव2