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आदिपुराण में नरक-स्वर्ग विमर्श
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भीतर से सम चौरस, नीचे कमल की कर्णिका के समान सुकोमल होते हैं। ये देव संगीतप्रिय, क्रीडाप्रिय, विचित्र चिन्हों वाले होते हैं। वे हास्य को अधिक पसन्द करते हैं। दक्षिण और उत्तर की अपेक्षा उन पर 32 इन्द्र शासन चलाते हैं; वहाँ भी राजनीति की मर्यादाएँ हैं। मनुष्यों के हानि एवं लाभ में भी ये निमित्त कारण बनते हैं।80 इस कारण वे देव वाणव्यन्तर कहलाते हैं।
3. ज्योतिष्क देव - जो विमान स्वयं प्रकाशमान होते हए उस धरती को भी द्योतित, ज्योतित, प्रकाशित करते हैं, वे ज्योतिष्क देवी कहलाते हैं। अथवा जो द्योतित करते हैं, वे ज्योतिष्-विमान हैं, उन ज्योतिर्विमानों में रहने वाले देव ज्योतिष्क देव कहलाते हैं। जैसे-चन्द्र, सूर्य ग्रह, नक्षत्र, तारक।82
___4. वैमानिक देव - ये उर्ध्वलोक के विमानों में ही निवास करते हैं। जिन देवों का निवास स्थान विमानों के अतिरिक्त कहीं नहीं होता वे देव वैमानिक या विमानवासी देव कहलाते हैं।83 वैमानिक देव दो प्रकार के होते हैं
(क) कल्पोपग या कल्पोपन्न (ख) कल्पातीत
कल्पोपन्न का अर्थ है कल्प यानि आचार मर्यादा हो अर्थात् जिन विमानों में इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिक आदि पद होते हैं। वे कल्प के नाम से विख्यात हैं और कल्पों में उत्पन्न देव कल्पोपन्न कहलाते हैं।
जहाँ उक्त व्यवहार या मर्यादा न होवे वे कल्पातीत है। कल्पोपन्न के 12 भेद हैं1. सौधर्म
7. महाशुक्र 2. ईशान
8. सहस्रार 3. सनत्कुमार
9. आणत 4. माहेन्द्र
10. प्राणत 5. ब्रह्मलोक
11 आरण 6. लान्तक
12. अच्युत कल्पातीत देव 2 प्रकार के हैं - ग्रैवेयक और अनुत्तरोपपातिक।
लोकपुरुष की ग्रीवा पर स्थित होने से ये विमान ग्रैवेयक कहलाते हैं। ग्रैवेयक देव 9 प्रकार के हैं --