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जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण
लोक के ठीक बीच में मध्य लोक है जोकि असंख्यात द्वीप समुन्द्रों से शोभायमान है वे द्वीप समुद्रों में जम्बूद्वीप थाली के समान गोल है बाकी के द्वीप समुद्र वलय के समान बीच में खाली है। जम्बू द्वीप मध्यलोक के मध्यभाग में है तथा लवण समुद्र से घिरा हुआ है। इसके बीच में नाभि के समान मेरुपर्वत है। यह जम्बूद्वीप एक लाख योजन चौड़ा है-इसमें हिमवत्, महाहिमवान् आदि छह कुलाचलों, सात क्षेत्र-भरत, ऐरावत, हेमवत, हरिवर्ष, रम्यकवर्ष, महाविदेह आदि और गङ्गा, सिन्धु आदि चौदह नदियों में विभक्त हैं।68
विदेह क्षेत्र में दो अन्य प्रमुख भाग हैं जिनके नाम है – देवकुरु और उत्तरकुरु। धातकी खण्ड और पुष्करार्ध-द्वीप में इन सभी क्षेत्रों की दुगनी-दुगनी संख्या है। ये सभी क्षेत्र कर्मभूमि, अकर्मभूमि और कुलाचलों के भेद से विभक्त है69 जहाँ मानव, कृषि, वाणिज्य, शिल्पकला आदि के द्वारा जीवनयापन करते हैं वे क्षेत्र कर्मभूमि हैं। यहाँ का मनुष्य सर्वोत्कृष्ट पुण्य और सर्वोत्कृष्ट पाप कर सकता है। भरत, ऐरावत और महाविदेह इसकी सीमा में आते हैं। जम्बूद्वीप में एक भरत, एक ऐरावत, एक महाविदेह, धातकी खण्ड में दो भरत, दो ऐरावत,
और दो महाविदेह तथा पुष्करार्ध द्वीप में दो भरत, दो ऐरावत, दो महाविदेह। इस प्रकार ढाई-द्वीपों में कुल मिलाकर कर्मभूमि के पन्द्रह क्षेत्र हैं।70
जहाँ पर कृषि आदि कर्म किये बिना ही भोगोपभोग की सामग्री सहज उपलब्ध हो जाती है, जीवन यापन करने के लिए किसी प्रयत्न विशेष की आवश्यकता नहीं होती, वह अकर्मभूमि क्षेत्र है। जम्बूद्वीप में छह क्षेत्र हैं। इसी प्रकार धातकी खण्डद्वीप और पुष्करार्धद्वीप में हेमवतादि प्रत्येक के दो-दो क्षेत्र होने से दोनों द्वीपों के बारह-बारह क्षेत्र हैं। इस प्रकार सब मिलकर अकर्मभूमि के तीस क्षेत्र होते हैं।
कर्मभूमि और अकर्मभूमि के प्रदेश के अतिरिक्त जो समुद्र के मध्यवर्ती द्वीप बच जाते हैं वे अन्तरद्वीप कहलाते हैं। जम्बूद्वीप के चारों ओर फैले हुए लवण समुद्र में हिमवान पर्वत, शिखरी पर्वत के पूर्व और पश्चिम में दो-दो शाखाएँ अर्थात् दाढाएँ हैं और प्रत्येक के अन्तर पाकर 7-7 द्वीप की दाढ़ाओं पर अट्ठाईस अन्तरद्वीप हैं। इस प्रकार सब मिलाकर 56 अन्तरद्वीप होते हैं। इन अन्तरद्वीपों में मनुष्य निवास करते हैं। इसी प्रकार मध्यलोक इतना विशाल है तथापि ऊर्ध्वलोक और अधोलोक की अपेक्षा इसका क्षेत्रफल शून्य के बराबर है। अब उन पुण्यात्माओं का वर्णन करते हैं। जिन्होंने अच्छे (श्रेष्ठ) कर्म करके सुगति का बन्ध किया है। पुण्य फल भोगने के लिए जीव कहाँ-कहाँ जाता है। उस लोक का वर्णन किया गया है।