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________________ आदिपुराण में नरक-स्वर्ग विमर्श 115 भवों में भी कभी मनुष्य भव प्राप्त नहीं करते हैं अर्थात् सातवें नरक से निकले जीव मध्यलोक में केवल तिर्यंच में ही जन्म धारण करते हैं। 1 छठी पृथ्वी से निकले हुए जीव यदि अनन्तभवों में मनुष्य भव धारण करते हैं तो नियम से संयमवृत्ति नहीं ग्रहण कर सकते हैं। 02 पाँचवें नरक से निकला हुआ जीव मनुष्य होकर संयम ( साधुवृत्ति) धारण कर सकता है। संक्लेश परिणामों के कारण कर्मक्षय न होने से मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता है। 63 चौथे नरक से निकले जीव को कभी मोक्ष प्राप्त हो सकता है, परन्तु तीर्थंकर पद को प्राप्त नहीं कर सकता है क्योंकि तीर्थंकर होने की शक्ति उस जीव में प्रकट नहीं हो सकती । 64 जो जीव तीसरे, दूसरे, पहले नरक से निकलते हैं वे तीर्थंकर पद पा सकते हैं। परन्तु उसी भव में चक्रवर्तीपद, वासुदेवपद, बलदेवपद प्राप्त नहीं कर सकते हैं 165 श्वेताम्बर परम्परा अनुसार प्रथम नरक से निकले हुए जीव चक्रवती पदवी प्राप्त कर सकते है। प्रथम और द्वितीय तीसरे नरक से निकले हुए जीव बलदेव और वासुदेव तीर्थंकर पदवी पा सकते हैं। चौथी नरक से निकले जीव मोक्ष गति प्राप्त कर सकते हैं। पाँचवी नरक से निकले जीव सर्वविरति धर्म का पालन कर सकते है। छठी नरक से निकले जीव देशविरति चारित्र धर्म का पालन कर सकते 1 सातवीं नरक से निकले जीव सम्यक्त्व प्राप्त कर सकते है। 65A - मध्यलोक ( तिर्यञ्क लोक ) लोक के मध्य में होने के कारण इसे मध्यलोक कहते हैं। ऊर्ध्व लोक के नीचे अधोलोक के ऊपर 1800 योजन प्रमाण मध्यलोक है। इसमें मनुष्य और तिर्यञ्चों का निवास है । इसलिए इसे तिर्यञ्क् लोक भी कहा जाता है। इस लोक में असंख्यात द्वीप और समुद्र परस्पर एक-दूसरे को घेरे हुए हैं। इतने विशाल क्षेत्र में केवल अढ़ाई द्वीप में ही मानव निवास करते हैं। 27 सम्पूर्ण
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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