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जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण नारकी जीवों में रस और दुर्गन्ध (नारकी जीवों के शरीर की गन्ध)
नारकी जीवों के शरीर से निकलने वाला रस अर्थात् पसीना कड़वे तुम्बे और कांजीर के संयोग से जैसा कड़वा और अनिष्ट रस निकलता है वैसा ही कड़वा नारकियों के शरीर से पसीना निकलता है।54
जिस प्रकार कुत्ता, बिलाव, गधा, ऊँट आदि जीवों के मृतक शरीर को एक स्थान पर इकट्ठा करने से जैसी दुर्गन्ध पैदा होती है वैसी ही दुर्गन्ध नारकियों के शरीर से आती है अर्थात् उससे कई गुणा अधिक दुर्गन्ध आती है।
नारकी जीवों के शरीर का स्पर्श
करोंत और गोखुरु का जैसा कठोर स्पर्श होता है वैसा ही कठोर स्पर्श नारकीयों के शरीर का भी होता है।56 जीवाभिगम सूत्र नारकियों के शरीर का स्पर्श कर्कश, छेद वाला और जली हुई वस्तु की तरह खुरदरा होता है अर्थात् पकी हुई ईंट की तरह खुरदरा होता है। नारकियों का शरीर फटी हुई चमड़ी और झुर्रियों वाला होने से कान्ति रहित होता है।56A
नारकियों का रूप
नारकियों के शरीर अशुभ कर्मों के उदय से अत्यन्त विकृत, घृणित तथा कुरुप रूप वाले होते हैं। नारकीयों का शरीर अपृथक्, विक्रिया होता है अर्थात् एक नारकी एक समय में अपने शरीर का एक ही आकार बना सकता है। वह देवों के समान अनेक रूप और मनचाहे रूप नारकी नहीं बना सकता।
नारकियों का आहार
__नारकी जीव अत्यन्त तीक्ष्ण और कड़वी थोड़ी-सी मिट्टी को चिरकाल में खाते हैं अत्यन्त दुर्गन्ध वाला व ग्लानि युक्त आहार करते हैं।
तात्पर्य यह है कि नारकी तीखा, खारा व गर्म वैतरणी नदी का जल पीते हैं और दुर्गन्ध युक्त मिट्टी का आहार करते हैं।
कुत्ता आदि जीवों की विष्ठा से भी अधिक दुर्गन्धित मिट्टी का भोजन करते हैं वे भी उन्हें बहुत कम मात्रा में मिलती है जबकि उनको भूख बहुत अधिक लगती है।60 कौन से नरक से निकले जीव कौन-सी अवस्था को प्राप्त होते हैं?
सातवीं नरक-भूमि से निकले हुए नारकी जीव मनुष्यलोक में अनन्त