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________________ आदिपुराण में नरक-स्वर्ग विमर्श 111 दु:खों से पीड़ित होकर नारकी ज्यों ही असिपत्र वन में अर्थात् तलवार की धार के समान तीखे पत्तों वाले वन में पहुँचते हैं त्यों ही वहाँ अग्नि के फुलिगों को बरसाता हुआ प्रचण्ड वायु बहने लगता है। ऐसी वायु के आघात से पत्ते नीचे गिरने लगते हैं वे नारकी जीवों को वेदना देते है और नारकी जीव जीवों को रोते-चिल्लाते हैं। कई नारकीयों के मर्मस्थानों और हड्डियों के सन्धि स्थानों को पैनी करोंत से विदीर्ण कर डालते हैं, उनके नखों के अग्रभाग में तपायी हुई लोहे की सुईयाँ चुभाकर उन्हें भयंकर वेदना देते हैं।40 नारकीयों को पहाड़ की चोटी से नीचे गिरा देते हैं। नीचे गिराकर उन्हें खूब पीटते हैं।। जो जीव पहले बहुत उद्दण्डी थे उन्हें वे नारकी तपे हुए लोहे के आसन पर बिठाते हैं और तीक्ष्ण काँटों के आसन पर सुलाते हैं।42 भयंकर रूप से आकाश में उड़ते हुए गीध नारकीयों को झपटते हैं और कुत्ते भौंक-भौंक कर उन्हें भयभीत करते हैं।43 ___ असिपत्र वन में चलने वाली वायु का स्पर्श इतना कठोर है कि उसके शब्द सुनते ही भय लगने लगता है और जो सेमर का पेड़ है उसे याद करते ही नारकियों के शरीर के समस्त अंगों में काँटे चुभने लगते हैं।44 नरक में वैतरणी नाम की नदी है जो बहुत ही विशाल है। वैतरणी नदी में रक्त के समान खारा और गर्म जल बहता रहता है। उस नदी के पानी की धार उस्तरे के समान तेज है उस तीक्ष्ण जल के शरीर पर लगते ही नारकियों के अङ्ग कट जाते हैं। यह नदी बहुत ही दुर्गम और गहन है। यह भिलावे के रस से भरी हुई होती है। इसमें तैरना तो दूर रहा इसका नाम सुनते ही भय लगने लगता है।45 ये वही नारकीयों के रहने के बिल हैं जो कि गर्मी से भीतर ही भीतर जल रहे हैं और जिनमें ये नारकी छिद्र-रहित साँचे में गली हुई सुवर्ण, चाँदी आदि धातुओं की तरह घुमाये जाते हैं। नरकों की वेदना इतनी तीव्र है कि इसे कोई सहन नहीं कर सकता, मार-पीट इतनी भयंकर है उसे कोई बर्दाश्त नहीं कर सकता। ये श्वास भी आयु पूर्ण हुए बिना छूट नहीं सकते।46 नारकियों को नरकों में निमेष मात्र भी सुख नहीं है। उन्हें दिन-राते दुःख ही दुःख भोगना पड़ता है।47 संसार में कोई ऐसा पदार्थ नहीं जिसके साथ नरक के दु:खों की उपमा की जाये। नरकों की वेदना असह्य और अचिन्त्य है।48
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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