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________________ आदिपुराण में तत्त्व विमर्श व जीव तत्त्व विषयक विचारधारायें 85 के शरीर में रही हुई उष्णता से इसका अस्तित्त्व सिद्ध होता है। आहार का पाचन इसी शरीर से होता है, ऐसे शरीर का तापमान कभी बढ़ता है तो कभी घटता है और कभी अपने स्तर पर रहता है यह सब तैजस शरीर का कार्य है। तैजस समुद्घात भी इस शरीर के होने पर ही होता है। 286 स्थूल शरीर में दीप्ति विशेष का कारणभूत एक अत्यन्त सूक्ष्म शरीर प्रत्येक जीव में होता है, जिसे तैजस शरीर कहते हैं। इसके अतिरिक्त तप व ऋद्धि विशेष के द्वारा भी दायें व बायें कन्धे से कोई विशेष प्रकार का प्रज्वलित पुतला उत्पन्न किया जाता है, उसे तैजस समुद्घात कहते हैं। 287 शरीर स्कन्ध के पद्मराग मणि के समान वर्ण का नाम तेज है तथा शरीर से निकली हुई रश्मि कला का नाम प्रभा है। इससे जो हुआ है, वह तैजस शरीर है। तेज और प्रभागुण से युक्त तैजस शरीर है । 288 तैजस शरीर के कारण शरीर में तेज, ओज ऊर्जा रहती है तथा पचनपाचनादि क्रियाएँ भी इसी शरीर के कारण होती है। शरीरस्थ तेजस शक्ति का कारण भी यही है। 289 अष्ट कर्मों से रहित होकर जब जीव मुक्त होता है तब औदारिक, तैजस, कार्मण तीनों शरीरों का नाश करके अनन्त गुणों को प्राप्त करके अनन्त सुखों को प्राप्त करता है । 290 (5) कार्मण शरीर जीव के प्रदेशों के साथ बन्धे अष्ट कर्मों के सूक्ष्म पुद्गल स्कन्ध के संग्रह का नाम कार्मण शरीर है। बाहरी स्थूल शरीर की मृत्यु हो जाने पर भी इसकी मृत्यु नहीं होती । विग्रहगति में जीवों के मात्र कार्मणशरीर का सद्भाव होने के कारण कार्मण काययोग माना जाता है और उस अवस्था में आहार वर्गणा के पुद्गलों का ग्रहण नहीं होता इसलिए विग्रह गति में जीव अनाहारक होता है । 291 उपर्युक्त पाँच प्रकार के शरीरों में से हम अपनी इन्द्रियों से केवल औदारिक शरीर का ज्ञान कर सकते हैं। शेष शरीर इतने सूक्ष्म है कि हमारी इन्द्रियाँ उनका ग्रहण नहीं कर सकती। वीतराग केवली ही उन सूक्ष्म शरीरों का प्रत्यक्ष कर सकते हैं इनकी सूक्ष्मता का क्रम इस प्रकार है औदारिक से वैक्रिय सूक्ष्म है, वैक्रिय से आहारक सूक्ष्म है, आहारक से तैजस सूक्ष्म है और तैजस से कार्मण सूक्ष्म है। 292 तैजस और कार्मण शरीर का किसी से भी प्रतिघात नहीं होता। वे लोकाकाश में अपनी शक्ति के अनुसार कहीं भी जा सकते हैं। उनके लिए किसी भी प्रकार का बाह्य बन्धन नहीं है। ये दोनों शरीर
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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