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आदिपुराण में तत्त्व विमर्श व जीव तत्त्व विषयक विचारधारायें
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जीव के औदारिकादि शरीर
जीव के पाँच शरीर शरीर
जीवात्मा के साथ अनादि काल से सम्बन्ध बनाये हुए अनेक प्रकार के शरीरों का नामोल्लेख तो मिलता है। जो विशेष नामकर्म के उदय से प्राप्त होकर गलते हैं, वे शरीर हैं।274
शरीर, शील और स्वभाव ये एकार्थवाचीशब्द है। अनन्तानतपुद्गलों के समवाय का नाम शरीर है।275
जिसके उदय से आत्मा के शरीर की रचना होती है वह शरीर नामकर्म है।276
जिस कर्म के उदय से आहार वर्गणा के पुद्गल स्कन्ध तथा तैजस और कार्मण वर्गणा के पुद्गल स्कन्ध शरीर योग्य परिणामों के द्वारा परिणत होते हुए जीव के साथ सम्बद्ध होते हैं उस कर्मस्कन्ध की शरीर संज्ञा है।277
शरीर के भेद
संसारी जीवों के शरीर पाँच प्रकार के होते हैं
(1) औदारिक शरीर (2) वैक्रिय शरीर (3) आहारक शरीर (4) तेजस् शरीर (5) कार्मण शरीर278
1. औदारिक शरीर
उदार, उराल, उरल, ओराल ओदारिय प्राकृत के इन शब्दों का संस्कृत रूप औदारिक बनता है। उदार शब्द का अर्थ है सर्वश्रेष्ठ! सर्वश्रेष्ठ पुद्गलों से 'बना हुआ शरीर औदारिक कहलाता है। तीर्थंकर चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव तथा गणधरों के शरीर इसी कोटि के होते हैं। उराल का अर्थ-विशाल, जो शरीर अन्य शरीरों की अपेक्षा विशाल परिणाम वाला हो उसे भी औदारिक कहते हैं। मच्छ और महोराग का शरीर। यह शरीर मनुष्यों और तिर्यंचों का होता है। एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक सभी तिर्यंचों के शरीर औदारिक ही होते हैं। जो शरीर माँस-हड्डी, रुधिर, स्नायु, शिरा आदि वाला हो वह ओराल कहलाता है। ओराल का संस्कृत रूप भी औदारिक बनता है।7)