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________________ जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण 3. कापोत लेश्या - यह लेश्या कबूतर के समान रंग वाली होती है। 4. तेजो लेश्या - यह लेश्या तप्त स्वर्ण के समान वर्ण वाली होती है। 5. पद्म लेश्या - यह लेश्या पद्म के सदृश वर्ण वाली होती है। 6. शुक्ल लेश्या - यह लेश्या कास के फूल के समान श्वेत वर्ण वाली होती है।228 (ख) भाव लेश्या मोहनीय कर्म के उदय और क्षयोपशम, उपशम अथवा क्षय से उत्पन्न हुआ जो भाव है वह भाव लेश्या है।229 कषाय के उदय से अनुरंजित योग (अनुरक्त) की प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं।230 भाव लेश्या छः प्रकार की मानी गई है : 1. कृष्ण भाव लेश्या 2. नील भाव लेश्या 3. कापोत भाव लेश्या 4. पीत भाव लेश्या 5. पद्म भाव लेश्या 6. शुक्ल भाव लेश्या। __ 1. कृष्ण भाव लेश्या - काजल के सदृश कृष्ण वर्ण के कलुषित लेश्याजातीय पुद्गलों के सम्पर्क से आत्मा में ऐसे क्रूर, अति रौद्र परिणाम होते हैं। कृष्ण लेश्या का धारक जीव अत्यन्त क्रोधी होता है। दूसरों से वैर-विरोध रखता है -- स्वभाव से झगड़ालू होता है। धर्म और दया का उनमें लेशमात्र नहीं होता।231 2. नील भाव लेश्या - नील लेश्या232 के परिणाम से जीव में दयालुता नहीं होती, विवेक रहित हो, वे ईर्ष्या, असहिष्णुता माया से युक्त होते हैं दूसरों को ठगने में अतिदक्ष हो, धनधान्य के विषय में जिसकी अतितीव्र लालसा हो। ऐसे विचारों वाले नील लेश्या वाले होते हैं।233 ___ 3. कापोत भाव लेश्या - कापोत लेश्या के धारक जीव दूसरों पर रोष करते है। निन्दा करते है, स्वभाव से निर्दयी होते हैं, दूसरों को दुःख देना अथवा वैर रखना, अधिकतर शोकाकुलित रहना तथा भय ग्रस्त रहना, दूसरों के ऐश्वर्यादि को सहन न करना आदि लक्षणों से जो युक्त होते है। और कार्य करने में हमेशा कुटिल होते हैं।234 4. पीत भाव लेश्या या तेजो लेश्या - तेजो लेश्या वाले जीव अपने कर्त्तव्य अकर्त्तव्य को सेव्य असेव्य को समझने वाला हो सबके विषय में
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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