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________________ आदिपुराण में तत्त्व विमर्श व जीव तत्त्व विषयक विचारधारायें 75 (ग) अवधिदर्शन - जिसमें अवधिदर्शनावरण कर्म के क्षयोपशम से इन्द्रियों की सहायता के बिना अवधि-लब्धि वालों को जो रूपीद्रव्यविषयक सामान्य बोध होता है, वह अवधि दर्शन है।217 (घ) केवलदर्शन - सम्पूर्ण द्रव्य पर्यायों को सामान्यरूप से विषय करने वाले बोध को केवलदर्शन कहते हैं।218 10. लेश्या छ:219 लेश्या शब्द लिश् धातु से बना है। लिश् का अर्थ है - चिपकना, संबद्ध होना अर्थात् जिसके द्वारा कर्म आत्मा के साथ चिपकते हैं या बन्धते हैं उसे लेश्या कहते हैं। लेश्या आत्मा का शुभ या अशुभ परिणाम है।220 जिसके द्वारा जीव पुण्य-पाप से अपने को लिप्त करता है और उनके अधीन करता है, उसको लेश्या कहते हैं।221 जो लिम्पन करती है, अर्थात् जो कर्मों से आत्मा को लिप्त करती है उसको लेश्या कहते हैं।222 जो जीव व कर्म का सम्बन्ध कराती है वह लेश्या कहलाती है।223 अभिप्राय यह है कि मिथ्यात्व, असंयम कषाय और योग ये लेश्या हैं। लेश्या दो प्रकार की होती है - (क) द्रव्य लेश्या (ख) भाव लेश्या224। (क) द्रव्य लेश्या - शरीर नामकर्म के उदय से उत्पन्न होने वाली द्रव्य लेश्या है।225 जो वर्ण नामकर्म के उदय से शरीर का वर्ण होता है अर्थात् शरीर के रंग को द्रव्य लेश्या कहते हैं।226 द्रव्य-लेश्या आगे छ: प्रकार की होती है-- ___ 1. कृष्ण लेश्या 2. नील लेश्या 3. कापोत लेश्या 4. तेजो लेश्या 5. पद्म लेश्या 6. शुक्ल लेश्या227 । 1. कृष्ण लेश्या - यह लेश्या भौरे के समान वर्ण वाली होती है। 2. नील लेश्या - यह लेश्या नील की गोली या नील मणि या मयूरकण्ठ के समान रंग वाली होती है।
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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