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आदिपुराण में तत्त्व विमर्श व जीव तत्त्व विषयक विचारधारायें
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आदि विषयों का ज्ञान होता है, वे इन्द्रिय कहलाती हैं।। 64 इन इन्द्रियों की अपेक्षा से संसारी जीवों के पाँच भेद हैं :
(क) एकेन्द्रिय (ख) द्वीन्द्रिय (ग) त्रीन्द्रिय (घ) चतुरिन्द्रिय (3) पंचेन्द्रिय 65 (क) एकेन्द्रिय - जिन जीवों के एकेन्द्रिय जाति नामकर्म का उदय होता
है और केवल एक स्पर्शन इन्द्रिय पाई जाती है। उसे एकेन्द्रिय कहते
हैं। जैसे-फल, फूलादि। 66 (ख) द्वीन्द्रिय - जिन जीवों के स्पर्शन और रसन ये दो इन्द्रियाँ हैं तथा
द्वीन्द्रिय जाति नामकर्म का उदय है, उन जीवों को द्वीन्द्रिय कहते हैं।167 जैसे-सीप, शंख आदि। त्रीन्द्रिय - जिस जाति में त्रीन्द्रिय जाति नामकर्म के उदय से स्पर्शन, रसन और घ्राण यह तीन इन्द्रियाँ हों उसे त्रीन्द्रिय कहते
हैं।168 जैसे-ज़े, लीख आदि। (घ) चतुरिन्द्रिय - चतुरिन्द्रिय जाति नामकर्म के उदय से जिन जीवों
के स्पर्शन, रसन, घ्राण और चक्षु यह चार इन्द्रियाँ होती हैं, वे जीव
चतुरिन्द्रिय कहते हैं।।69 जैसे-मच्छर, मक्खी आदि। (ङ) पंचेन्द्रिय - पंचेन्द्रिय जीवों के स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत
यह पाँच इन्द्रियाँ 70 होती है और इन पाँच इन्द्रियों के होने में निमित्त पंचेन्द्रिय जाति नामकर्म है।17। जैसे-मनुष्य पशु, पक्षी आदि।
3. काय छः
काय - जिसकी रचना और वृद्धि यथायोग्य औदारिक, वैक्रिय आदि पुद्गल-स्कन्धों से होती है तथा जो शरीर नामकर्म के उदय से निष्पन्न होता है। कायमार्गणा के छः भेद 72 होते हैं :(क) पृथ्वीकाय (ख) अप्काय (ग) तेजस्काय (घ) वायुकाय
(ङ) वनस्पतिकाय (च) त्रसकाय'73 (क) पृथ्वीकायिक - मृत्तिका, धातु आदि पृथ्वी ही जिनका शरीर है वे
पृथ्वीकायिक हैं। इससे सिद्ध होता है कि पृथ्वी जीवात्मक है।। 74 " (ख) अपकायिक - पानी ही जिन जीवों का शरीर है वे अपकायिक
है। जैसे अण्डे में पानी संजीव है, वैसे ही पानी ही जीवात्मक है।