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________________ आदिपुराण में तत्त्व विमर्श व जीव तत्त्व विषयक विचारधारायें 65 14. अयोगी केवली गुणस्थान अयोगी का अर्थ है – देहादि के सब व्यापारों से रहित - सब प्रकार की क्रियाओं से विरत। इस गणस्थान के उपान्त्य समय में बहत्तर और अन्तिम समय में तेरह कर्म प्रकृतियों का नाश होता है।152 - इस गुणस्थान में केवली भगवान योगों का निरोध करके शैलेशी अवस्था प्राप्त करते हैं। केवली अयोगी होते ही शरीर रहित हो जाता है। इस गुणस्थान के बाद लेपरहित, शरीररहित, शुद्ध, अव्याबाध, रोग से रहित, सूक्ष्म, अव्यक्त, व्यक्त और मुक्त होते हुए लोक के अन्तिम भाग में जाकर विराजमान होते हैं। सिद्ध भगवान एक समय में लोकान्त भाग में पहुँच जाते हैं। वे सिद्धशिला में अवस्थित होकर शाश्वत आत्मिक आनन्द में निमग्न हो जाते हैं। 53 चौदह मार्गाणाएँ एवं आठ अनुयोग चौदह मार्गणा - जीव के स्वरूप को सूक्ष्मता से जानने के लिए गुणस्थानों के साथ-साथ मार्गणा स्थान एवं अनुयोगों को जानना अति आवश्यक है। आदिपुराण में भी उनका नामोल्लेख हुआ है। इनका विस्तृत वर्णन इस प्रकार है। मार्गणा का अर्थ - मार्गणा का अर्थ है - खोजना। चौदह गुणस्थान जिसमें या जिनके द्वारा खोजे जाते हैं, उन्हें मार्गणा कहते हैं। ___ मार्गणा का अर्थ होता है - अनुसन्धान, खोज, अन्वेषण, विचारणा, गवेषणा आदि। इसके फलितार्थ को हम आध्यात्मिक सर्वेक्षण कह सकते हैं। जैसे कि धवला में कहा गया है – जिन-प्रवचन-दृष्ट जीव जिन भावों के द्वारा, जिन विविध-पर्यायों अथवा अवस्थाओं में खोजे जाते हैं, उन्हें मार्गणा कहते हैं। 54 जीव की विविध स्वाभाविक-वैभाविक अवस्थाओं की जिनके माध्यम से मार्गणा की जाती है, ऐसी मार्गणाएँ चौदह कही गई हैं।55-- 1. गति 2. इन्द्रिय 3. काय 4. योग 5. वेद 6. कषाय 7. ज्ञान 8. संयम 9. दर्शन 10. लेश्या 11. सम्यक्त्व 12. भव्य 13. संज्ञी 14. आहारक।56 1. गति . गति - गति शब्द की निरुक्ति – गम्यते इति गतिः, गमनं वा गतिः, और गम्यतेऽनेन सा गति:।।
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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