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________________ आदिपुराण में तत्त्व विमर्श व जीव तत्त्व विषयक विचारधारायें 59 गुण शब्द से अभिप्राय है - आत्म विकास का अंश। अर्थात् जैसे-जैसे आत्म विकास का अंश बढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे गुणस्थान का उत्कर्ष माना गया है। यों तो गुणस्थान असंख्यात है, क्योंकि आत्मा की जितनी परिणतियाँ हैं, उतने ही उसके गुणस्थान होते हैं।122 फिर भी उनको चौदह वर्गों में विभक्त किया गया है। मोक्षरूपी प्रासाद पर पहुँचने के लिये यह चौदह पैडी (सोपान) वाली सीढ़ी है। पहली पैडी से जीव चढ़ने लगते हैं, कोई धीरे से तो कोई जल्दी से और यथाशक्ति आगे बढ़ने का प्रयत्न करते हैं। कोई चढ़ते-चढ़ते ध्यान न रखने से नीचे गिर जाते हैं और गिरते-गिरते पहली पैडी पर भी जा गिरते हैं। ग्यारहवीं पैडी तक पहुँचे हुए जीव को भी मोह का धक्का लगने से नीचे गिरना पड़ता है। इसीलिए ऊपर चढ़ने वाले जीव तनिक भी प्रमाद न करे, इस बात की चेतावनी आध्यात्मिक शास्त्रों (उत्तराध्ययन सूत्र) ने दी है। बारहवीं पैडी पर पहुँचने के बाद गिरने का किसी प्रकार का भय नहीं रहता। आठवीं, नौवीं पैडी पर मोह का क्षय प्रारम्भ हुआ कि फिर गिरने का भय सर्वथा दूर हो जाता है। ग्यारहवें गुणस्थान पर पहुँचे हुए जीव को भी नीचे गिरना पड़ता है, इसका कारण यह है कि उसने मोह का क्षय नहीं किन्तु उपशम किया होता है। परन्तु आठवें, नौवें गुणस्थान में मोह के उपशम के बदले क्षय की प्रक्रिया यदि शुरू की जाये तो फिर नीचे गिरना असम्भव हो जाता है।123 इन चौदह गुण श्रेणियों के नाम इस प्रकार हैं - 1. मिथ्यात्व गुणस्थान 2. सास्वादन गुणस्थान 3. मिश्र गुणस्थान 4. अविरति सम्यग्दृष्टि गुणस्थान 5. देश विरति सम्यग्दृष्टि गुणस्थान 6. प्रमत्त संयत गुणस्थान 7. अप्रमत्त संयत गुणस्थान 8. निवृत्ति बादर गुणस्थान 9. अनिवृत्ति बादर गुणस्थान 10. सूक्ष्म सम्पराय गुणस्थान 11. उपशान्त मोहनीय गुणस्थान 12. क्षीण मोहनीय गुणस्थान 13. सयोगी केवली गुणस्थान 14. अयोगी केवली गुणस्थान 24 यह चौदह जीवसमास (गुणस्थान) है सिद्ध इन गुणस्थानों से रहित हैं।125 1. मिथ्यात्व गुणस्थान आध्यात्मिक विकास की यह निम्नतम श्रेणी है। जहाँ मिथ्यात्व सर्वाधिक रहता है और सम्यकत्व का पूर्णतः अभाव रहता है। 26 इस अवस्था में व्यक्ति
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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