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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र सुख के दिन सुख के दिन कैसा गौरव पूर्ण दृश्य है । सूर्य अस्ताचल पर जा पहुंचा है। सारे आकाश में सूर्य के सिवा और कुछ नजर नहीं आता । चार पहर तक आकाश की मरुभूमि में चलकर, इस समय सारे जगत को लाल रंग कर सूर्य अस्त होने जा रहा है। जैसे गौरव के साथ उसका उदय हुआ था वैसे ही गौरव से अब उनका अस्त भी हो रहा है । यह लो अस्त हो गया । पीले आकाश का रंग अब धूसर हो रहा है । अब मानो देवताओं की आरती के लिए संध्या इस समय अस्त होते हुए सूर्य की ओर चुपचाप देखती हुई धीरे - धीरे विश्वास मंदिर में प्रवेश कर रही है। ऐसे प्रशांत समय में एक भव्य मकान में एक युवती बैठी हुई गीत गा रही है। प्यार करूं जिनको मैं वे भी, मुझको प्यार करें तो धन्य । निर्जन वन में या महलन में, उन्हें चाहती रहूं अनन्य ॥ चरण धूलि धोऊंगी उनकी, अपने आंसु के जल से । हृदय देवता उन्हें बनाकर, पूजूंगी मन निश्चल से ॥ मेरे मन मंदिर से स्वामी, बाहर न जायें कभी कहीं । सुखी रहूँ या दुःखी सदा मैं, पर वे हरदम रहें यहीं 134
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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