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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र सुख के दिन गाना पूरा भी न होने पाया था इतने ही में वहां पर एक प्रसन्नचित्त युवक ने प्रवेश किया। वह युवक उस युवती के पीछे आ खड़ा हुआ और सहसा बोल उठा अहा! आज तो देवी बड़ी प्रसन्न मालूम होती हैं, कल कैसा भयंकर कष्ट भोगा होगा क्या वह आज तुम्हें सर्वथा भूल गया? यह सुन युवती एक दम खड़ी हो गयी और उस युवक की ओर प्रेमभरी नजर से देखती हुई बोली-प्यारे! आप नहीं जानते क्या कठिन यात्रा का प्रवासी अपनी यात्रा के अंत में इष्ट देव के दर्शन या प्रवास के परिश्रम को सर्वथा भूल नहीं जाता? युवक बोला - प्रिये! मेरे अभाव में तुमने बड़े संकट का सामना किया? ___युवती - हृदयेश्वर! मैं कोमलांगी अवश्य हूं परंतु आपके उपदेश से मुझ में सहन शक्ति बढ़ गयी है । प्यारे! आपके वियोग दुःख के सिवा मैं अन्य दुःखों को कुछ गिनती ही नहीं । दुःख में अनेक प्रकार की शिक्षा मिलती है । बल्कि मैं तो समझती हूं कि दुःख बहुत ही महत् और सुख बहुत ही नीच होता है । सुख में अहंकार होता है । उसका स्वर बहुत ऊंचा और कर्कश होता है, परंतु विषाद बहुत ही विनयी, बहुत ही नीरव होता है । दुःख में जो कुछ जमा किया जाता है, सुख में वही खर्च किया जाता है । दुःख जड़ की भांति मिट्टी में से रस खींचता है, परंतु सुख फूलों और पत्तों की तरह विकसित होकर उसी रस को व्यय करता है । दुःख वर्षा की तरह तपी हुई भूमि को शीतल करता है और सुख शरद् ऋतु के पूर्ण चंद्रमा की भांति आकर उस पर हंसता है । दुःख में त्याग होता है और सुख में भोग । दुःख किसानों की तरह खेत की मिट्टी तोड़ता है और सुख राजा के समान उसमें पैदा हुए अन्न का भोग करता है, इसी कारण दुःख मधुर लगता है। युवक - प्रिये! तुम्हारा कथन बिल्कुल यथार्थ है । दुःख पड़ने पर ही मनुष्य के गुणों का विकास होता है । हम दोनों ने तो अपने अशुभ कर्मों का उदय होने से दुःख का अनुभव किया ही परंतु हमारे कारण हमारे माता पिताओं को भी भारी कष्ट का अनुभव करना पड़ा । हमारे अकस्मात् चले आने के कारण तुम्हारे माता पिता अभी तक हमारे वियोग से महान् दुःख का अनुभव कर रहे हैं । यह समाचार अभी हमारी खोज में आये हुए तुम्हारे भाई के द्वारा मिला है। 135
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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