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________________ १५८ सप्तमो लम्बः। है उसका राजा ( दृढमित्रः क्षत्रियः ) हदमित्र नामका क्षत्रि है ( तत्प्रिया नलिनाह्वयः स्यात् ) और उसकी स्त्रीका नाम नलिना है ॥ १८॥ सुमित्राद्यास्तयोः पुत्रास्तेष्वप्यन्यतमोऽस्म्यहम् । वयसैव वयं पक्का विश्वेऽपि न तु विद्यया ॥ ६९ ॥ __ अन्वयार्थः—और (तयोः) उन दोनोंके (सुमित्राद्याः पुत्राः अभूवन् ) सुमित्र आदि कई पुत्र हैं । ( तेषु ) उनमें से ( अहं) मैं भी ( अन्यतमः अस्मि ) एक हूं ( वयं विश्वेऽपि ) हम सब (वयसा एव पक्का) उम्रसे ही बड़े हो गये (तु) परन्तु (न विद्यया) विद्यासे बड़े नहीं हैं ॥ १९ ॥ तातपादोऽयमस्माकं चापविद्याविशारदम् । विचिनोति न चेद्दोष एषोऽप्यालोक्यतामिति ॥७०॥ ___ अन्वयार्थः- ( अस्माकं ) हमारे ( अयम् तातपादः ) यह पूज्य पिता ( चापविद्याविशारदम् ) धनुर्विद्यामें पण्डित पुरुषको ( विचिनोति ) खोज रहे हैं । ( चेत् ) यदि ( दोषः न ) आप कुछ दोष न समझें तो ( एषः अपि ) इनको भी ( आलोक्यतां) देखें अर्थात् उनसे मिलें ॥ (इति) ऐसा कुमारने कहा ॥ ७० ॥ तयाहारे विसंवादो विदुषोऽप्यस्य नाजनि । विधिर्घटयतीष्टार्थैः स्वयमेव हि देहिनः ॥ ७१ ॥ __अन्वयार्थः----( तद्व्याहारे ) उस कुमारके कथन में ( अस्य विदुषः अपि ) इन विद्वान् जीवंधरको भी ( विसंवादः ) कुछ भी विरोध ( न अनि ) नहीं हुआ। अत्र नीतिः ! (हि) निश्चयसे
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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