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सप्तमो लम्बः । अविपश्चितोः ) विद्वान् और मूर्खमें (कश्चित् भेदः न) और कुछ भी भेद नहीं है ॥ ५६ ॥ परं सहस्रधीभाजि स्त्रीवर्ग का पतिव्रता। पातिव्रत्यं हि नारीगां गत्यभावे तु कुत्रचित् ॥५७॥ ___अन्वयार्थः- परं) केवल ( सहस्रधीभानिस्त्रीवर्गे ) हजारों प्रकारकी बुद्धिको करनेवाली स्त्री समूहमें (का पतिव्रता) पातिवृत्य धर्म कहांसे हो सकता है अर्थात् नहीं हो सकता (हि) निश्चयसे (कुत्रचित्) कहीं पर (गत्यभावे तु) जाने आनेके अभावमें ही (नारीणां पातिवृत्यं भवेत् ) स्त्रियोंका पातिवृत्यपना रह सक्ता है
॥ १७ ॥
मदमात्सर्यमायारागरोषादिभूषिताः। असत्याशुद्धिकौटिल्यशाध्यमौढ्यधनाः स्त्रियः॥॥ ___अन्वयार्थः- (स्त्रियः) स्त्रियां (मदमात्सर्यमायेारागदोषादि भूषिताः ) घमंड, डाह, छल कपट, प्रीति, विरोध और क्रोध इनसे भूषित और ( असत्याशुद्धिकौटिल्यशाट्यमौढ्यधनाः ) झूठ, अपवित्रता, कुटिलता, शठता और मूर्खता ये हैं धन जिसके ऐसी होती हैं ॥ १८ ॥ निघृणे निवे क्रूरे निर्व्यवस्थे निरङ्कुशे। पापे पापनिमित्ते च कलत्रे ते कुतः स्पृहा ।। ५९ ॥ ___अन्वयार्थः-(निघृणे) घृणा रहित, (निवे) दया हीन, (क्रूरे) दुष्ट (निर्व्यवस्थे। अव्यवस्थित, (निरङ्कुशे) स्वतन्त्र, (पापे) पाप रूप (च) और पाप निमित्ते) पापकी कारणी भूत (कलत्रे) स्त्रीमें (ते स्पृहा) तेरी इच्छा (कुतः भवेत् । कैसे होती है ॥१९॥