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________________ क्षत्रचूड़ामणिः । भगवन्दुणर्यध्वौन्तराकीर्ण पथि मे सति । सज्ज्ञानदीपिका भूयात्संसारावधिवर्धनी ॥ ३३ ॥ __अन्वयार्थः- हे भगवन् ) हे भगवन् ! (दुर्णयध्वान्तः) दुर्नय रूपी अंधकारसे (आकीर्णे) व्याप्त (मे पथि सति) मेरे मार्गके होने पर (संसारावधिवर्धनी) मोक्षको देनेवाला (सज्ञानदीपिका भूयात् ) सम्यग्ज्ञान रूपी दीपक आपके प्रप्तादसे प्राप्त होवे ॥३३॥ जन्मजीर्णाटवीमध्ये जनुषान्धस्य मे सती। सन्मार्गे भगवन्भक्तिर्भवतान्मुक्तिदायिनी ॥३४॥ अन्वयार्थः- हे भगवन् ! ) हे भगवन् ! (जन्मजीर्णाटवीमध्ये) जन्म मरण रूप संसार रूपी अत्यन्त पुराने वनमें (जनुषान्धस्य) जन्मसे अन्धे (मे) मेरे मुक्तिदायनी) मुक्ति की देनेवाली (सन्मार्गे सती) सन्मार्गमें समीचीन अर्थात् प्रवृत्ति करनेवाली ( ते भक्तिः भवतात् आपकी भक्ति होवे ॥ ३४ ॥ स्वा नाति मालकांनामका रैकनायकः । शांतिना जिः कुशिशीलये ।। ३५ ॥ ___ अन्वयार्थ :- (अनेकान्कनायकः) स्याद्वाद मतके अद्वतीय नायक शांतिनाथः जिनः) शांतिनाथ जिने द्र ( पंसृति शशांतये) संसारके दुःखों की शांतिके लिये एकांतां) हमेशा स्थिर रहनेवाली (मम म्वांत शांतिः) मेरे हृदय की शांतिको (कुर्यत् ) करें ॥३५॥ इति स्तोत्रेण तचासादुद्घाटिनकटकन् ।। मुक्तिद्वारवाटस्य भेदना किं न भिद्यते ॥ ३६॥ ___अन्वयार्थ:--'इति स्तोत्रेण, इस प्रकार स्तुति करनेसे (तत, उद्घाटितकबाटकम् आप्तीत् । वह मिनमंदिर खुले हुए किंवाड़ोंवाला हो गया अर्थात् उस जिनमंदिरके किंवाड़ खुल गये । ठीक
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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