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________________ विषयसूची . . सप्तपर्णवक्षके नीचे बैठ गये और जोर-जोरसे प्रज्ञप्तिका पाठ करने लगे। प्रज्ञप्तिका पाठ सुनकर सिंहकी तन्द्रा दूर हो गयी और नम्रभावसे वह मुनिराजके समीप जा बैठा। अमितकीर्ति मुनिराजने उसे संबोधित करते हुए उसके पूर्वभव सुनाये। पुरुरवा भीलसे लेकर मरीचि तथा स्थावर तकके भव सुनाये । १२-११३ २३-३२ सर्ग : ४ इसी पूर्वभववर्णनकी शृङ्खलामें मुनिराजने कहा कि मगधदेशके राजगृह नगरमें राजा विश्वभूति रहता था। उसकी स्त्रीका नाम जयिनी था। स्थावरका जीव स्वर्गसे चयकर इन्हींके विश्वनन्दी नामका पुत्र हुआ। वृद्ध द्वारपालको देखकर राजा विश्वभूति संसारसे विरक्त हो गये तथा अपने भाई विशाखभूतिको राज्यपद तथा विश्वनन्दीको युवराजपद देकर तपस्या करने लगे। १-२७ ३३-३६ राजा विशाखभूतिकी स्त्री लक्ष्मणा थी। उससे उसे विशाखनन्दी पुत्रकी प्राप्ति हुई । विश्वनन्दीके द्वारा निर्माणित सुन्दर उद्यानको देखकर विशाखनन्दीका मन ललचा गया। उसे प्राप्त करने के लिये उसने अपनी मातासे कहा । माताने राजासे कहा । राजाने मन्त्रियोंसे मन्त्रणा की परन्तु विश्वनन्दीकी समीचीन प्रवृत्तिको देखते हुए मन्त्रियोंने राजा विशाखभूतिको सलाह दी कि ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिये जो विश्वनन्दीके प्रतिकूल हो । राजा विशाखभूतिने स्त्री और पुत्रकी बातोंमें आकर विश्वनन्दीको बाहर भेज दिया। इधर विशाखनन्दीने उसके वनपर अपना अधिकार कर लिया परन्तु एक सेवकके द्वारा इसकी खबर पाकर विश्वनन्दीने बाहरसे आकर अपना वन वापिस छीन लिया। २८-८० ३६-४३ अन्तमें विश्वनन्दी और विशाखभूतिने दीक्षा धारण कर ली। विशाखनन्दी राज्यकी रक्षा नहीं कर सका। एक बार मुनि विश्वनन्दी चर्याके लिये मथुरा नगरीमें गये। वहाँ एक गायने उन्हें गिरा दिया। विशाखनन्दी एक वेश्याकी छतपर बैठा यह देख रहा था। उसने मुनिका उपहास किया। मुनि संन्यासमरण कर महेन्द्रकल्पमें देव हुए। ८१-९४ ४३-४५ सर्ग:५ इसी पूर्वभवकी शृङ्खलामें मुनिराजने बताया कि जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्र सम्बन्धी विजयार्धपर्वत पर एक अलका नामकी नगरी है। मयूरकण्ठ उसका राजा था और कनकमाला मयूरकण्ठकी स्त्री थी। विशाखनन्दीका जीव इन्हीं के अश्वग्रीव नामका पुत्र हुआ । मयूरकण्ठने पुत्रजन्मका बहुत उत्सव किया। अश्वग्रीव बड़ा प्रतापी हुआ। वह प्रतिनारायणपदसे युक्त था। १-३० ४६-५१ इसी भरतक्षेत्रमें सुरमा नामक देश में राजा प्रजापति राज्य करते थे । उनकी जयावती और मगवती दो रानियाँ थीं । इनमेंसे जयावती रानीके पर्ववणित विशाखभतिका जीव विजय नामका पुत्र हुआ और विश्वनन्दीका जीव मृगवतीके त्रिपष्ठ नामक पुत्र हुआ। ३१-६२ ५१-५५ त्रिपुष्ठ बड़ा बलवान पुत्र था। उसने राज्यमें उत्पात मचानेवाले एक भयंकर सिंहको हाथसे चीरकर नष्ट कर दिया था। सिंहके नष्ट करनेसे त्रिपृष्ठकी बहुत प्रसिद्धि
SR No.022642
Book TitleVardhaman Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Muni, Chunilal V Shah
PublisherChunilal V Shah
Publication Year1931
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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