SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 341
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्रतविधि सर्ग १६ : श्लोक ४६ : पृष्ठ २२४ कनकावली परिसमाप्य विधिवदपि रत्नमालिकाम् । सिंहविलसितमुपावसदप्युरुमुक्तये तदनु मौक्तिकावलीम् ॥१६।४६।। १. मुक्तावली इस व्रतमें २५ उपवास और ९ पारणाएँ होती हैं। उनका क्रम यह है-एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, पाँच उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा और एक उपवास एक पारणा। यह व्रत चौंतीस दिनमें पूर्ण होता है । २. सिंहनिष्क्रीडितव्रत सिंहनिष्क्रीडिकव्रतके जघन्य, मध्यम और उत्कृष्टकी अपेक्षा तीन भेद है । जघन्यमें ६० उपवास और २० पारणाएँ होती हैं । यह व्रत ८० दिनमें पूर्ण होता है । मध्यममें एक सौ त्रेपन उपवास और तेतीस पारणाएं होती हैं । यह व्रत एक सौ छियासी दिनमें पूर्ण होता है। उत्कृष्टमें चार सौ छियानबे उपवास और इकसठ पारणाएं होती हैं । इस व्रतमें कल्पना यह है कि जिस प्रकार सिंह किसी पर्वत पर क्रमसे ऊपर चढ़ता है और फिर क्रमसे नीचे उतरता है उसी प्रकार इस व्रतमें मनि तपरूपी पर्वतके शिखरपर क्रमसे चढ़ता है और क्रमसे उतरता है। इसके उपवास और पारणाकी विधि निम्नलिखित यन्त्रोंसे स्पष्ट की जाती है। . नीचेकी पंक्तिसे उपवास और ऊपरकी पंक्तिसे जिसमें एकका अंक लिखा है पारणा समझना चाहिये । जघन्य सिंहनिष्क्रीडित व्रतका यन्त्र
SR No.022642
Book TitleVardhaman Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Muni, Chunilal V Shah
PublisherChunilal V Shah
Publication Year1931
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy