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________________ षोडशः सर्गः जहदात्मदृष्टि 'फललौल्यमनभिमतरागशान्तये । ध्यानपठन सुखसिद्धिकरं प्रयतोऽकरोदनशनं सुनिश्चितम् ॥ २३ विधिवत्प्रजागरवितर्कपरिचितिसमाधिसिद्धये । सत्त्वममलमवलम्ब्य मुनिमितभोजनं विमलधीश्चकार सः ॥२४ अरुणत्क्षुधः खलु कृशोऽपि मुनिरतितृषो विसर्पणम् । द्वित्रिभवनगमनोचितया विधिवत्स वृत्तिपरिसंख्यया परम् ॥२५ प्रविधाय वृष्यरसमोक्षमवजित निद्राक्षचापलः । क्षोभविसरजनकानि सदा मनसो रुरोध खलु कारणानि सः ॥ २६ स पदेष्वजन्तुवधकेषु विहितशयनासनस्थितिः । ध्यानपरिचितिचतुर्थवरव्रत रक्षणार्थमभवत्समर्थधीः ॥२७ स तपे तपोभिरभिसूर्य मचलधृतिरास्त दुःसहे । त्यक्तनिजतनुरुचेर्महतः किमिहास्ति किञ्चिदपि तापकारणम् ॥२८ तरुमूलभावसददभ्रघनवलयमुक्तवारिभिः । सिक्ततनुरपि नभस्यचलं शमिनामहो चरितमद्भूतास्पदम् ॥२९ शिशिरागमे बहिरशेत निशि शिशिरपातभीषणे । भीतिविरहितसमाचरणः किमु दुष्करेऽपि परिमुह्यति प्रभुः ॥३० २२१ उत्कृष्ट तप तपने के लिये तत्पर हुए । ॥ २२ ॥ वे आत्मदृष्टि होकर लौकिक फल की तृष्णा को छोड़ते हुए अनिष्टराग की शान्ति के लिये और अध्ययन की सुख से सिद्धि करने वाले नियमित तप को बड़े प्रयत्न से करते थे ॥ २३ ॥ चित्र के द्वारा आगम के अर्थ को बार-बार भावना करते हुए क्रम से बारह प्रकार के कठिन तथा जागरण, श्रुताभ्यास और समाधि की सिद्धि के लिये निर्दोष आत्मबल का अवलम्बन लेकर वे निर्मलबुद्धि मुनि विधिपूर्वक ऊनोदर तप करते थे ॥ २४ ॥ वे मुनि कृश होकर भी दो तीन घर तक जाने से नियम से सहित वृत्तिपरिसंख्यान तप के द्वारा विधिपूर्वक क्षुधा और अत्यधिक प्यास के अधिक विस्तार को निश्चय से रोकते थे ।। २५ ।। गरिष्ठ रस का परित्याग कर जिन्होंने निद्रा और इन्द्रियों की चपलता को जीत लिया था ऐसे वे मुनि मन के क्षोभसमूह को उत्पन्न करने वाले कारणों को सदा निश्चय से रोकते थे ||२६|| समर्थं बुद्धि को धारण करनेवाले वे मुनि, ध्यान के परिचय तथा ब्रह्मचर्यं व्रत की रक्षा के लिये जीव जन्तुओं के वध से रहित स्थानों में शयन, आसन और स्थिति को करते थे ।। २७ ।। अचल धैर्य को धारण करनेवाले वे मुनि दुःसह ग्रीष्म ऋतु में तपों के द्वारा सूर्य के सम्मुख बैठते थे सो ठीक ही है क्योंकि जिसने अपने शरीर से राग छोड़ दिया है ऐसे महापुरुष के संताप का कारण इस लोक में ॥ २८ ॥ सावन के महीने में बहुत बड़े मेघमण्डल के द्वारा छोड़े हुए जल से यद्यपि उनका शरीर भीग जाता था तो भी वे वृक्ष के नीचे निवास करते थे सो ठीक ही है क्योंकि मुनियों का चरित्र आश्चर्य का स्थान होता ही है ।। २९ ।। जिनका आचरण भय से रहित था ऐसे वे मुनि हिमपात . क्या कुछ भी है ? अर्थात् नहीं है १. आत्मनि दृष्टिर्यथा स्यात्तथा दृष्टफलं म० । २. सुनिश्चितः ब० । ३. रिति म० । ४. वृक्ष म० ।
SR No.022642
Book TitleVardhaman Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Muni, Chunilal V Shah
PublisherChunilal V Shah
Publication Year1931
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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