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________________ सम्पादन सामग्री प्रस्तावना श्रीवर्धमानचरितका सम्पादन निम्नलिखित प्रतियोंके आधारपर किया गया है । 'ब' प्रतिका परिचय यह प्रति ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन व्यावरकी है। श्री पं० हीरालालजी शास्त्रीके सौजन्य से प्राप्त हो सकी है । इसमें १३ x ५ इंचके सौ पत्र हैं । प्रति पत्रमें ९ पंक्तियाँ और प्रति पंक्ति में ४०-४५ अक्षर हैं । चमकदार काली स्याहीसे सुपुष्ट कागजपर लिखी गई है । पूर्णविरामके लिये लाल स्याहीका उपयोग किया गया है । यह प्रति १९५८ विक्रम संवत् कार्तिककी लिखी है । संवत् १६३३ वैशाख सुदी नवमीकी लिखी हुई प्राचीन प्रतिसे निबाई ( राजस्थान ) के नेमिजिनालय में इसकी प्रतिलिपि हुई है । श्रीमान् सेठ ब्र० हीरालालजी पाटनीसे पत्राचार करनेपर मालूम हुआ कि निबाईके उक्त जिनालय में अब वह प्रति नहीं है । यह प्रति किसी असंस्कृतज्ञ लिपिकर्ताके द्वारा लिखी हुई जान पड़ती है इसीलिये इसमें अशुद्धियाँ अधिक रह गई हैं । परन्तु अशुद्धियोंके रहते हुए भी कितने ही शुद्ध पाठ इसमें मिले हैं। श्री पं० जिनदास जी शास्त्री फडकुले सोलापुरके द्वारा सम्पादिक मराठी टीकावाले संस्करणमें एक श्लोक किरातार्जुनीयका " सहसा विदधीत न क्रियाम्" - मूलमें शामिल हो गया था, वह इसमें नहीं है । एक श्लोकका भाव पुनरुक्त था, वह भी इसमें नहीं है । इसके अतिरिक्त दो-तीन स्थानोंपर श्लोकोंका क्रम भी परिवर्तनको लिये हुए है । शुद्ध पाठोंकी अवधारणा करनेमें इस प्रतिसे बहुत सहायता मिली है । व्यावरसे प्राप्त होनेके कारण इसका सांकेतिक नाम 'ब' किया गया है । प्रतिके अन्तमें लिखनेवालेकी विस्तृत प्रशस्ति दी गई है । 'म' प्रति का परिचय यह प्रति मार्च सन् १९३१ में श्री रावजी सखाराम दोशी सोलापुरके द्वारा प्रकाशित कराई गई थी । इसमें मूल श्लोकोंके साथ श्री पं० जिनदासजी शास्त्री फडकुले सोलापुरके द्वारा निर्मित मराठी टीका दी गई है । इसके प्रारम्भ में आचार्यप्रवर श्री शान्तिसागरजी महाराजका तिरंगा चित्र दिया गया है । इसके अतिरिक्त दो-तीन चित्र ग्रन्थके सन्दर्भसे सम्बन्ध रखनेवाले भी हैं । सभी चित्र भावपूर्ण हैं । शास्त्रीजीने विस्तृत भूमिकाके अतिरिक्त कई तुलनात्मक उद्धरण भी दिये हैं । समग्र ग्रन्थ २० x ३० साईजके ३८६ पृष्ठों में समाप्त हुआ है । प्रारम्भके २८ पृष्ठ पृथक् हैं । उस समय इसकी कीमत चार रुपये थी पर अब वर्षोंसे अप्राप्य है । मुद्रित तथा मराठी टीकासे युक्त होनेके कारण इसका सांकेतिक नाम 'म' रक्खा गया है । 'स' प्रति का परिचय चुका तब वीरनिर्वाण संवत् २४४४ में उपर्युक्त दोनों प्रतियों के आधारपर जब काम पूर्ण किया जा सूरतसे प्रकाशित महावीरचरितकी एक प्रति और उपलब्ध हुई कृत हिन्दी अनुवादमात्र है । संस्कृत श्लोक न देकर । यह श्री पं० खूबचन्द्रजी शास्त्री द्वारा नम्बर अनुवादमें दिये गये हैं । इसका मात्र उनके
SR No.022642
Book TitleVardhaman Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Muni, Chunilal V Shah
PublisherChunilal V Shah
Publication Year1931
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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