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________________ वर्धमानचरितम् प्रालेयबिन्दुभिरमी नवमौक्तिकाभैः ___कीर्णा विभान्ति तरवः पतितैर्नभस्तः । शोतत्विषो मृदुकरस्य रसाद्रितानां स्वेदाम्भसामुरुकणैरिव तारकाणाम् ॥७६ क्षिप्रं विहाय कुमुदानि विकासलक्षम्या ___ त्यक्तानि नाथ मधुपा मधुपानलोलाः। यान्त्युच्छ्वसत्कमलसौरभवासिताशं पदमाकरं ननु सगन्धमुपैति सर्वः ॥७७ यावन्न पक्षयुगलं विधुनोति कोकः श्रान्तो निशाविरहजागरखिन्नयापि । तावन्मुदा न समगामि न चक्रवाक्या _ स्निह्यत्यहो युवतिरेव चिराय पुंसः ॥७८ सद्यो विनिद्रकमलेक्षणयातिरक्तः पूर्व प्रसारितकरः शननिवृत्य । आलिङ्गयते दिनकरो दिवसधियायं प्रातयु'वेव रिपुमानद मानवत्या ॥७९ इत्थं वचोभिरचिराय स मागधानां निद्रां विहाय शयनादुदगानरेन्द्रः । कण्ठापितं मदनपाशमिवातिकृच्छा दुन्मोचयन्भुजलताद्वितयं प्रियायाः॥८० को झुकाकर विमुख होती हुई कहीं जा रही है । ७५ ॥ नवीन मोतियों के समान आभावाली, आकाश से पड़ी ओस को बूंदों से व्याप्त ये वृक्ष ऐसे सुशोभित हो रहे हैं मानो कोमल किरणों से युक्त चन्द्रमा के रस से आर्द्र ताराओं के स्वेद जल के बड़े-बड़े कणों से हो व्याप्त हो रहे हों ॥ ७६ ।। हे नाथ ! मधुपान के लोभी भ्रमर, विकास को लक्ष्मी से रहित कुमुदों को शीघ्र ही छोड़ कर खिलते हुए कमलों की सुगन्ध से दिशाओं को सुवासित करनेवाले कमल वन की ओर जा रहे हैं सो ठोक ही है क्योंकि निश्चय ही सभी लोग गन्धवाले के पास हो जाते हैं । ७७ ॥ खेद को प्राप्त हुआ चकवा जब तक पङ्खों के युगल को कम्मित नहीं करता है तब तक रात्रिभर के विरह से उत्पन्न जागरण से खेद को प्राप्त हुई चकवी हर्षपूर्वक आकर उससे मिल गई सो ठीक ही है क्योंकि स्त्री पुरुष से चिरकाल तक स्नेह करतो ही है ।। १८ ॥ हे शत्रुओं का मान खण्डन करने वाले राजन् ! जिस प्रकार विनिद्र नेत्रोंवालो मानवती स्त्री प्रातःकाल के समय धोरे से करवट बदल कर अनुराग से युक्त तथा आलिङ्गन की आकाङ्क्षा से पहले ही हाथ पसार कर पड़े हुए पति का शीघ्र आलिङ्गन करती है उसी प्रकार विकसित कमल रूप नेत्रोंवालो दिवस लक्ष्मी धीरे से आकर अत्यन्त लाल वर्ण से युक्त तथा पहले से ही किरणों को फैलानेवाले इस सूर्य का आलिङ्गन कर रही है ।। ७९ ॥ इस प्रकार स्तुतिपाठकों के वचनों से शीघ्र ही निद्रा को छोड़कर वह
SR No.022642
Book TitleVardhaman Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Muni, Chunilal V Shah
PublisherChunilal V Shah
Publication Year1931
Total Pages514
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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