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________________ जगबंधव ! सव्वण्णू ! सव्वदंसण ! सामिय ! । समओ एस ते तित्थं भयवं ! तं पयट्टय ॥२०३।। -हे जगबांधव ! सर्वज्ञ ! सर्वदर्शन ! स्वामी ! आ समय छे के जे वखते भगवन् ! आपना तीर्थ- प्रवर्तन करो! त्यार पछी प्रभु सांवत्सरिक दान करे छे तेनुं वर्णन करी पोष कृष्ण तेरसने दिने अनुराधा नक्षत्रमां चंद्र आवतां सहस्राम्रवनमां पंचमुष्ठि केशलोच करी छट्ठना तप सहित सिद्धने नमस्कार करी सर्व- पच्चक्खाण करी सावज्जं सयलं जोगं पच्चक्खामि त्ति भासए । मोक्खमग्गमहाजाणं चारित्तं पडिवज्जए ।२०७।। -सर्व सावध योगने पच्चक्टुं छु-तनुं छु एम कहे छे अने मोक्षमार्गना महायानरूपी चारित्रने स्वीकारे छे-दीक्षा ले छे. आ वखते प्रभुने मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न थयु. हजार राजानी साथे व्रत लीधुं ने पछी पोमपुरपद्मपुरना स्वामी सोमदत्त राजाने त्यां बीजे दिने परमानथी पारणुं कर्यु. पंच वसुधारा थई. त्रण मास विहार करी पुनः सहस्राम्रवनमां आवतां त्यां छट्ठना तपे सहित फागुण कृष्ण सातमीए अनुराधा नक्षत्रमां चंद्र हतो त्यारे केवलज्ञान उत्पन्न थयु. पछी इंद्रो-देवताओए समवसरण रच्यु. स्वामी सिंहासने विराजे छे. सौधर्मेन्द्र (संस्कृत श्लोक २८८ थी २९५मां) प्रभुनी स्तुति करी तेमने देशना आपवा प्रार्थना करे छे. प्रभु कर्मविचार पर देशना आपे छे. आ कर्मविचार जोतां ग्रंथकारनुं जैन कर्म-फिलसुफी- अच्छं ज्ञान जणाय छे. देशना पुरी थतां गणधर दत्त के जे अजापुत्रनो जीव हतो तेणे स्वामीना पूर्वभव केवा हता के जेथी तीर्थंकरत्व प्राप्त थयुं एम पूछतां स्वामी पोताना पूर्व भव जणावे छे. रत्नसंचया नगरीमां पद्म नामनो राजा थयो. काले जुगंधर नामना आचार्य आवतां तेमनी पासे जतां ते राजा तेमनो उपदेश सांभळे छे. ते आचार्य देशनामां पुण्यथी सर्व वांछित मळे छे एम कही पुण्यपर मदनसुंदरनी कथा कहे छे (पा.नं. ३४२-३५९) अने अपुण्यपर मंगलनी कथा कहे छे (पा.नं. ३६०-३६६), पछी संस्कृत भाषामां विनयर्नु माहात्म्य कही ते पर विनीतनी कथा (पा.नं. ३६७-३७२) अने दुर्विनयपर भोगराजनी कथा (पा.नं. ३७३-३७९), दान- माहात्म्य कही ते पर कामकेतुनी कथा (पा.नं. ३८०-३८९), के जे कथामां अभयदानपर सोमनी आडकथा (पा.नं. ३९०-३९४), उपरोधदानपर सुंदरनी चन्द्रप्रभचरित्रम्, पूर्वप्रकाशननी प्रस्तावना ।
SR No.022638
Book TitleChandraprabh Charitram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHitvardhanvijay
PublisherKusum Amrut Trust
Publication Year1930
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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