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श्रीनागेन्द्र गणाऽधीशैः श्रीमद् देवेन्द्रसूरिभिः । प्रतिष्ठितो मन्त्रशक्तिसम्पन्नसकलेहितैः ।।
तैरेव सम्मेतगिरेर्विंशतिस्तीर्थनायकाः । आनिन्यिरे मन्त्रशक्त्या त्रयः कान्तीपुरीस्थिताः ॥ तदादीदं स्थापितं सत्तीर्थं देवेन्द्रसूरिभिः । देवप्रभावाद् विभविसम्पन्नजनवाञ्छितम् ॥
- एवी रीते अहर्निश संघ साथे प्रयाण करता संघपति देसल सेरिसा पहोंच्यां. त्यां पार्श्वजिन ऊर्ध्व प्रतिमाए (काउस्सग्गध्याने) रहेला छे. धरणेंद्रथी पूजाता चरणवाळा जे प्रभु आ कलिकालमां पण सकल (सप्रभाव) छे, जे (बिंब) ने पहेलां सूत्रधारे पोतानी आंखे पाटा बांधी एक ज रात्रिमां देवना आदेशथी घड्युं हतुं, जेनी प्रतिष्ठा श्रीनागेन्द्रगणना अधीश श्रीदेवेन्द्रसूरिए करी हती, तेज देवेन्द्रसूरिए सम्मेतगिरि ( सम्मेतशिखर) थी वीश तीर्थंकरो (बिंबो)ने अने कांतीपुरीमा रहेल ऋण तीर्थंकर (बिंबो) ने मन्त्रशक्तिथी आण्या हता. त्यारथी आ श्रेष्ठतीर्थ देवेन्द्रसूरिए स्थाप्युं छे, के जे देवप्रभावथी भव्यजनोना वांछितने पूरे छे" (आ वात पंडित लालचंद्र भ० गांधीए 'श्रीशत्रुंजयतीर्थनो उद्धारक समरसिंह - तिलंगदेशनो स्वामी' ए नामना पोताना लेखमां उद्धरी छे. जैनयुग पु०१ पृ०१८८)
आ सेरीसक तीर्थनी साथे संबंध धरावनार देवेन्द्रसूरि श्रीहेमचंद्राचार्यना समकालीन होवाथी अने ते तीर्थमां ते सूरिए, चमत्कार बताव्यानी लोककथा - 'जनप्रसिद्धि' जिनमंडनगणि पोताना सं० १४९२ मां रचेला कुमारपालप्रबंध (प्रकाशक श्रीजैन आत्मानंदसभा नं. ३४) मां पा.नं. १२-१३ मां जणावे छे के
'एकदा श्रीगुरु (देवचंद्रसूरि) ने पूछ्या वगर अन्य गच्छना देवेन्द्रसूरि अने मलयगिरि साथे कलाओमां कौशल मेळववा आदि अर्थे हेमचंद्र गौड देशप्रत्ये चाली नीकळ्या. खिल्लूर गाममां ते त्रणे रह्या. त्यां रहेला एक ग्लान मुनिनी वैयावृत्यथी सेवा करी; ते मुनीनी रैवतक ( गिरनार ) तीर्थमां जइ देवनमस्कार करवानी इच्छा होवाथी हेमचंद्रादि मुनिओए गामना मुखी श्रावकोने सुखासन अने तेने उपाडनारानी सगवड करी आपवा संबंधी कहेतां ते गोठवण थइ गया पछी त्रणे सूइ जतां प्रभाते उठतां त्रणेय पोताने रैवतक पर्वत पर जोया. शासनदेवताए प्रत्यक्ष थइ गुणस्तुति करी जणाव्युं के आप भाग्यवानो अत्र रहेतां ज सर्व बनशे, गौडदेशे जवुं नहि अने
चन्द्रप्रभचरित्रम्, पूर्वप्रकाशननी प्रस्तावना ।
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