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________________ ४७ श्रीराजेन्द्रगुणभञ्जरी । कमें उघाड़े मुख नहीं बोलना, शोभाप्रदर्शक सोना चांदी आदि धातुके फ्रेम युक्त चश्मा नहीं लगाना, और सांसारिक समाचारोंसे भरे हुए गृहस्थ लोगोंको पत्र नहीं देना, ये सभी लोकनिन्दनीय अनाचार होनेसे मोक्षाभिलाषी जिनाज्ञापालक सभी साधु साध्वियों को सर्व प्रकारसे सदैव त्याग करने योग्य हैं ।। १६६-१६८ ॥ अथाहतां च बिम्बानां, तत्सपर्याविधानकम् । जिनागमे च पंचांग्यां, बहुशः प्रत्यपादि वै ॥१६९।। तत्तुल्यानामतः साक्षाद, भक्तिभावेन ह्यङ्गिनाम् । भद्रकृजिनबिम्बाना-मर्चनादिकमस्ति वै ॥ १७० ॥ इत्थं मौलिकसिद्धान्तं, लक्ष्यीकृत्येह सद्धिया। तितीर्घः स्वयमन्येषां, तितारयिषयाप्यसौ ॥१७॥ श्रीमद्राजेन्द्रसूरीशो, मालवादौ तदाचरन् । स्वमान्यं स्थापयामास, निर्भीत्या विहरन् गुरुः १७२ (९) जिनेश्वर भगवानके बिम्बोंका तथा उनकी पूजाविधि आगम और पंचांगीमें अनेक स्थान पर दिखलाई गई है इसलिये जिनप्रतिमाओंकी भी भक्तिभाव सहित पूजन दर्शन आदि साक्षात् जिनेंद्र भगवानके समान ही प्राणियोंके कल्याण करनेवाले हैं। इस प्रकार मौलिक सिद्धान्तों को लक्ष्यमें रखकर सद्:
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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